पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६४१

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( ५९द ) संस्कृत केि *यश्:* 'शुभ: *दय:? चन्द्रमा:' छ्रायुः श्रादि के विसग हटा कर

  • धुश* नर्* कय* *चन्द्रसा*

हिन्दी शध्द है--छुह? । लोग गलती से लिखने लगे-----छ:' ! जैसे +भामह? को एक बड़े हिन्दी-'डाक्टर* ने सर्वत्र *भाम: लिखा है, उसी तरह दिन्दी का छुह' भी 'छः* हो गया ! हिन्दी की प्रकृति पर कौन विचार करता है ! श्रायु' जैसे रूप दिन्दी ग्रहण किए हैं । ह्िन्दी की थह प्रकृति ही है कि *तऋ* को श्रपनले रूप-गठत में नहीं रखा । पृष्ठ' को *पीठ* कर लिया । श्रौर संस्कृत तत्सम श्दो में भी श** अहशण नहीं--मातृ को नमस्कार? *पिठृ जी श्राए थे? नहीं---*भाता को सस्कार' षिता जी श्राए् थे' ऐसे प्रयोग होलति हैं । यूह वक्षा है । परन्तु हिन्दी के भाषा-विश्ञानी* श्रपना ृथष् मस रखते हैं कहीं लिएखा देखा जाता है-'श्री गणेशाथ नमह' । लाला लोगों ी दूफानों पर ऐसे शब्द-रूप देखने को प्राय: मिलते हैं । तो भाषाविज्ञानियों के सामने शक समस्था खड़ी हो जाए गी-*संस्कृत भमस्* हो गया ! ये ऐसी समस्याएँ? हैं, लो सुलझ नहीं सकी हैं ! कभी भी न सुलझें गी ! सुलझा रहे हैं भाषाविश्ञानी ! पीछे कहा जा कहीं- श्रव्यय को नसह? कैसे क्रिया का संबल्ध कभ से नहीं' सुना है कहीं कि विसीई किय का संबन्ध कम से न पर क्रिथा का फल दिखा् देता है, किसी पर नहीं; यह तो हम सब जानते हैं; परन्तु भाषाविज्ञान वाले कभी-कभी क्िया का संकन्ध ही कूर्म' से भहीं मानते ! हो ? किसी कर्म विवेचन करते हुए लिखा गया है. (मैं ने पुस्तक पढ़ी* कभ्मणि प्रथोग है,; पैरन्तु क्रिया का संदन्ध कलता भमैं' से है, कर्म *्धुल्लक* से नहीं 1** है् ! सभी कारकों का संवन्ध क्रिया से होता है । जिस फा संबन्ध क्रिया से नहीं, से 'झरक* फहा ही नहीं जा सकता । परन्तु ये कूडते हैं कि यहाँ क्रिया का संबन्ध *6फर्म' से है क्ी नईीं ! क्या चीज पढ़ी ? विन्वित्र बात पुश्तक पढ़ी* । परन्तु भाषाविज्ञानी यइाँ 'पढ़ने? का संबत्ध 'पुस्तक* से नहीं ानते ! श्रौर तुर यह कि कर्मणि प्रयोग* है; फिर भी *क्रिया का संबन्ध कर्म से नरीं है? ! तब फिर कर्मणि प्रयोग* कैसा ? है न झमेला ?