पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६४२

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१ ५६७ ) इस गड़बड़ी का एक इतिहास है । हिन्दी के व्याकरण-ग्रन्थों में राम ने पुस्तक पढ़ी जैसे प्रयोग कर्तृवाच्य’ बतलाए गए थे। लक्षण में लिखा रहता था--जब कर्ता के अनुसार क्रिया के लिङ्ग-वचन आदि हों, तो कर्तृवाच्य’ प्रयोग कहलाती है ।" मैं ने सोचा --राम ने पुस्तक पढ़ी में फत पुल्लिङ्ग और क्रिया स्त्रीलिङ्ग है; तब यह ‘कर्तृवाच्य’ कैसे ? यहीं से मेरा व्याकरण-विचार शुरू हुआ। मैंने कहा, ऐसे प्रयोग कर्मवाच्य हैं, “कर्तृवाच्य' नहीं। यह इतना समझाने में ही बीसौं वर्ष लग गए ! अन्ततः बड़े लोग भी समझ गए; पर दूसरों को एक उलझन में डाल गए ! *गुरु जी ने अपने ‘हिन्दी-व्याकरण' का संशोधन किया, जिस में राम ने पुस्तक पढ़ी जैसे प्रयोगों को-कर्तृवाच्य’-“कर्मणि प्रयोग' बतलाया ! मैं ने जो ‘कर्मवाच्य बतलाया था, उसे कर्मणि प्रयोग कर के स्वीकार कर लिया और अपना पहले का लिखा हुआ 'कर्तृवाच्य’ छोड़ा नहीं ! एक झमेला और बढ़ गया ! ‘कर्तरि प्रयोग को ही 'कर्तृवाच्य' कहते हैं और *कर्मणि प्रयोग' तथा 'कर्मवाच्य एक ही चीज हैं। तब ‘कर्तृवाच्य-कर्मणि प्रयोग क्या हुआ ? भाषाविज्ञानियों ने यह संशोधित ‘हिन्दी व्याकरण पढ़ा और कर्तृवाच्य’-कर्मणि प्रयोग' को यों समझाया कि संणि प्रयोग है; पर ‘क्रिया को संबन्ध तों से है ! वही--कर्तृवाच्य-कमणि प्रयोग' ! इसी तरह की शतशः मजेदार बाते हैं ! कहाँ तक वन किया जाए ! कर्म में सम्प्रदान-विभक्तिः ! भाषाविज्ञान में विवेचन करते हुए लिखा गया है-हिन्दी में कर्म की जगह सम्प्रदान का प्रयोग होता है ! थानी हलबाई का काम बढ़ई करता है ! भाषाविज्ञान वालों ने 'ने'-को श्रादि विभक्तियों को ही कारक समझ रखा है और कारक संस्कृत में आठ बतलाए गए हैं। संस्कृत के ध्याकरणाचार्यों को बतलाया गया है कि तुम ने छह कारक बतलाए; पर हैं। आठ ! सो, यह संशोधन संस्कृत-व्याकरण का ! हिन्दी में कारक बहुत कम बतलाए गए हैं ! हिन्दी की ‘को' विभक्ति को ‘सुम्प्रदान कारक’ बललाथा गया है और लिखा है कि कभी-कभी कर्म में सम्प्रदान लाता है' ! 'हम ने तुम को देखा’ यहाँको सम्प्रदान-प्रयोग बतलाया गया है ! कहा गया है किं कर्म में क्रो' का प्रयोग अणिवाचक शब्दों में ही नहीं होता है, जब कर्मत्व विधक्षित हो । परन्तु----‘कुन्या ने वर हूँढा लड़के ने लड़की देखी