पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६४३

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( ५६८ ) मैं लड़का देखता हूँ श्रादि में कोई कर्म है कि नहीं ? ये सब कर्म अप्राणिवान्चक हैं क्या ? प्रतिपादन किया गया है अभाववाच्य प्रयो-मैं ने रोटी ॐ वाया आदि के कारण ही हिन्दी में सम्प्रदान ( 'को' ) का प्रयोग कर्म में होने लगा ! मैं ने रोटी को खाया' न बोलता है १ टी भी क्या कोई जानवर है कि उसे कोई खा जाए गा ? खैर, इसे जाने दीजिए ! हम पूछ। हैं-लड़के ने बिल्ली को मारा’ और ‘लड़के ने बिल्ली भारी' में कोई अर्थ भेद है कि नहीं ? इसी अर्थ-भेद को प्रकट करने के लिए द्विविध प्रयोग हैं। *लड़के ने बिल्ली को मारा' भाववाच्य प्रयोग हैं। इस की जगह कर्मवाच्य लड़के ने बिल्ली भारी नहीं हो सकता है ये भावान्य प्रयोग होते हैं । मैं ने रोटी को खाय' जैसे नहीं । हम ने तुम को बुलाया' भाववाच्य प्रयोगः है। बहुत अच्छी तरह समझा दिया गया है। को' विभक्ति केवल सम्प्रदान से बँधी नहीं है—कर्ता, कर्म, सम्प्रदान तथा अधिकरण कारक में भी इस का प्रयोग होता है। यह सब इस ग्रन्थ में आ चुका है । संस्कृत में भी औ’ *भ्याम् श्रोस्’ ‘अस्’ (‘ङ ) आदि विभक्तियों के प्रयोग कई-कई कारकों में होते हैं ।

  • मारन’ स्वतंत्र क्रिया है ! मरना की प्रेरणा मारना नहीं है; यह भाषा-विज्ञान में लिखा है । कहते हैं, ‘मारना' एक तंत्र क्रिया है। यानी भर’ धातु से ‘मार' धातु की कोई संबन्ध नहीं है परन्तु “तरना' की प्रेरणा ‘तारमा' है! जिसे जैसा कह दिया जाए।

‘उजना' का मूल हिन्दी की ‘उजड़ना' क्रिया का विकास संस्कृत ‘उजूजाटयति' से बताया गया है ! इम ने ‘उत्पादथति' तो सुना था; अब उजाटयति' भाषाविज्ञान वालों ने बताया । उन्नाटयति' कभी उजड़ने-उजाड़ने के अर्थ में अाप ने भी कहीं देखा है ? 'उत्पादयति' से भी उजड़ना नहीं है। उत्पाटन' से 'पाड़ना का विकास है । ‘गन्ने चार पाड़ ले कुरुजनपद में बोलते हैं। राष्ट्रभाषा में उखाड़ना है---‘रान्ने चार उखाड़ ले । 'उत्पाट' के ‘उत्’ को अलग कर के और 'त’ को ‘ट' कर के कुरुजनपद में ‘पाड़' और 'उत्’ को ‘उ’ कर ले तथा पा’ को खा कर के, उखाड़ इधर पांचाल में । राष्ट्रभाषा में यह