पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६४४

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( ५६६ ) उखाड़ना चलता है। ‘उडूना' इस से भिन्न है। हिन्दी ने यह (उजड़ना) शव्द संस्कृत उन्मूलन के वजन पर अपना गढ़ है। किसी संस्कृत शब्द का विकास यह नहीं है । ‘मूल’ की राह अपना बड़' शब्द रखा और उत्' की जगह ‘अपना' उपसर्ग ‘उ । धातु बन गई- ‘उजड़-उजड़ना’ ‘उजड़ता है । भाषा-विज्ञान के हिन्दी-ग्रन्थों में इसी तरह सैकड़ों-हजारों शब्दों की मनमानी व्युत्पत्ति दी गई है ! विचार हैं ! ‘भूखा’ ‘ध्यासा' कृदन्त शब्द ! ‘भूखा प्यासा' शब्द कृदन्त बतलाए गए हैं--कर्मवाच्य कृदन्त' । यानी 'भूख' यास’ हिन्दी की धातुएँ हैं। लोग बोलते हैं नराम भूखता है' ‘राम प्यासता है। और ये ‘भूख प्यास' धातुएँ समर्मक हैं। तभी तो कर्मवाच्य कृदन्त' प्रत्यय ‘श्रा' हुआ है ! यानी रास रोटी भूस्खता है और ‘राम पानी प्यास्ता है' प्रयोग होते हैं | राम फल भूखता है; तो भूखा फल और राम पानी प्यासता हैं तो ‘प्यासा पानी’ ! कर्मवाच्य कृदन्त ! हम ने इन शब्दों को तद्धितान्त बतलाया है। भूख प्यास' शब्दों से तद्धित 'अ' प्रत्यय-भूखा’ ‘प्यासा' । संस्कृत में “बुभुक्षा’ ‘पिपासा' शब्दों से “बुभुक्षितः ‘पियासितः शब्द बनाएँ गे, तो तद्धित ‘इत' करना होगा । चाहे कृदन्त वहाँ समझ लो, बुभुक्ष तथा “पिपास' सुन्नन्त धातुओं से इत' । परन्तु हिन्दी में भूख *प्यास' धातु नहीं। इस लिए यहाँ इन से कृदन्त प्रत्यय का कोई संबन्ध ही नहीं । “बुभुक्षा' तथा ' पिपासा' से ‘भूख प्यास' बन गए। ‘प्युसि' और 'भूख' को धातु बताना ( और फिर सकर्मक धातु बनाना ) कितनी हिम्मत की बात है ! हद है न ! |शब्द-लिङ्ग । यहाँ ( हिन्दी में ) प्रत्यय के अनुसार लिङ्ग निर्धारित नहीं होता । 'ठेठ हिंन्दी में स्त्रीवचिके कई प्रत्यय हैं; यथा ई, इनि श्रादि ।' सूत्र है ! ‘प्रत्यय के अनुसार हिन्दी में लिङ्ग निर्धारित नहीं होता और ई’ (नि आदि ‘हिन्दी में स्त्रीवाचक प्रत्यय हैं ! कैसी बात है ? विवेचन ! ये 'ई' आदि' प्रत्यय ‘स्त्रीवाचक हैं । 'ल्ली आ रही है' की जगह-ई आ रही है कह सकते हैं ! कारण, इन प्रत्ययों से लिङ्ग निर्धारित नहीं होता। ये केवल 'श्रीवाचक है !