पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६४५

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विशेषण के लिड्ग-बचल-*हिन्दी में विशेषण-पदों में प्राय: परिवर्तनर हाँ, कहीं-कहीं संख्कृत के श्रनुसार इस प्रकार का परित्रतंन दृष्टि- नहीं होता । गोचर हेोता है ।** शतलब *वनवासिनी सीता? श्रादि से है । परन्तु हिन्दी के श्रपने गाठन लड़की? ऐसे लो प्रयोग बड़ा' धड़े' वड़ी' होते हैं, सो क्थां है ? यह विशेषश्ण में विशेष्य के श्रभुसार परिवर्तन नहीं है ? यह भी संख्कृत के श्रनुसार है ? में बड़ा लड़का* 'बड़े लड़के? वखी नूतन-निर्माण माषाविज्ञ न के परिडत' हिन्दी में नूलन निर्माण भी करते हैं । डा० बरबू- राम सकसेना ने श्रपने *सासान्य भाषा-विज्ञान? नामक ग्रन्थ भें 'ऐतिहासिक' श्रौर भौगोलिक' श्रादि की जगह इतिहासिक' *भूगोलिके' लैसे शब्द् चालू किए हैं ! दैनिक को *देनिक' श्र वाषिक' को वर्षिक' रूप श्रागे मिले गा ! वैष्धाकरण' की जवाह सक्सेना साहब ने धथ्याकरण' शब्द पसन्द किया है ! इस पसन्दगी को ब्या कहा जाए ? क्था कह कर इस की सभीक्षा की जाए ? सक्सेसा ने श्रपने प्रन्थ में भाषा के संबन्ध में बहुत सी भविष्य- श्राप ने कहा है कि 'ऐसे लकण इा ० वाणियाँ भी की हैं। उदाहरणाथ्थ, आान पड़तें हैं कि संबोधन के बहुचचन का निरनुनासिक रूप उड़ जाए गा श्रौर श्रनुनासिक रूप ही चले ग; क्यों कि पं० जवाहर लाल लेहरू श्रपनी स्पीचों में प्यारे भाइयों श्रौर बहनों? ही बलते हैं !? कैसा रुदृत हेतु दिया है श्रपन्ती सम्भ्वन्नता सें ?! जब हआारा सबसे बड़ा नेता बैसा बोलता है, तबर भाधा बदले गी कैसे नहीं ? इसी तरह भूगोलिक* श्रादि शब्द ही श्रागे चलें थे, भौगोलिक' श्रादि नहीं । भाषाविज्ञानियों की पसी सम्भावनाश्रों पर हम क्या कहे ? सब कुछ हो सुकला है ! भगीरथ ने गंगा का प्रवाइ दल' दिया था पर फिर गंगा जी को क्या न्दड़ा नहीं सकता ! कहिए--ज्ंगा ऊपर हिमालथ पर जा कर वहीं विलीन हो ज्ाए गी, जहाँ से निकल रही है । संभावना वही है।* ! श्रत्र कोई पहाड़ हिन्दी में नपुंसक लिड़्ग ! श्रपभ्रंश*-कास के प्रारम्भ में ही लोफभाषा ने नपुंसक लिङ्ग छोड़ दिया शा । परिन्तु माषाविश्ञानी बिद्वानों ने हिन्दी में-श्रलभाषा में-नपुंसक लिख् ' की खोष कर ली है--*न्रजभाषा में कभी-कभी नपुंसक लिङ्ग मिलता है ।