पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६४७

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नहीं ! गृह’ अकारान्त है, तब उस से विकसित ‘बर व्यंजनान्त कैसे हे गया ? उसे फिर स्वरान्त करने के लिए यह ' की कल्पना कैसी ? प्रश्न बेकार ! *विवेचन' है। | हम ने लिखा है कि 'बात' 'अंधा' आदि संस्कृत शब्दों के हिन्दी जब तद्भव रूप में आत्मसात् करती है, तो अन्य स्वर ह्वस्त्र कर देती है, जिस से कि तद्भव पुल्लिङ्ग का भ्रम न हो । परन्तु भाव-विज्ञानी लोग यहाँ भी 'अ' प्रत्यय करते हैं और उस से बात' बाँध' श्रादि बनाते हैं ! शब्द-विकास १ निरुक्त ) तथा व्याकरण का समन्वय ! पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग का भी कोई भेद नहीं। जरूरत हो, न हो, ‘अ’ प्रत्यय जरूर लगे गा ! कोई-कोई भाषाविज्ञानी 'घर' का विकास गृह' के नहीं, ग्वहोरो’ से मानते हैं, जिसका अर्थ श्राग’ ‘गर्मी’ ‘चूल्हा' है। यानी जहाँ श्रग या गर्मी हो, यानी जहाँ चूल्हा जले, वह धर' ! ब्वहोरो' के अन्त्य ‘ओं' लोप और फिर यह ‘अ’ प्रत्यय || इसी 'अ' प्रत्यय से “जाँच’ ‘समक' पहुँच' आदि भाववाचक संज्ञाएँ भी निष्पन्न बतलाई गई हैं ! ता चूँकि पढ़ दौड़ आदि धातुओं को भी व्यंजनान्त ( हलन्त), मान गया है; इस लिए "पदा-दौड़ा-पढ़ती'-दौड़ती' आदि के लिए *अता---'अती' प्रत्यय रखे अ६ हैं ! परन्तु सोता-सोती, रोता-रोती, पीते-पीती : आदि में अता-आती के 'अ' का क्या हुआ ? लोप हो गया हो गा ! यह फिर यहाँ ताक्षी सही ! बात क्या है ? । ३---'अन्' प्रत्यय । 'चुलन झाड़न' आदि बनाने के लिए, 'अन्' प्रत्यय रखा गया है । यूनान्त चल' आदि में लग कर चलन्' और फिर इस चलन्' में वही ( उंबय्येक ) 'अ' प्रत्यय-चलन’ ! कैसी गंभीर विवेचना है ? । ४. “अन्त्' प्रत्यय ‘टत गढ़न्त' आदि के लिए यह ‘अन्त्' प्रत्यय है। रटन्त' में फिर वही 'अ' प्रत्यय । 'र' धातु; रट्+अन्त् +अ = रटन्तु ! समझे ?