पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६४८

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५-आ' प्रत्यय नीचा, ऊँचा, कौश्रा, सुश्रा आदि की सिद्धि के लिए 'अ' प्रत्यय रखा गया है और इस की उत्पत्ति श्राक' से बताई गई है-“क' के का लोप कर के । यह ‘क’ संस्कृत के युष्माक'-अस्माक' से निकाला गया हैं, जो कि “युष्माकम् अस्माकम्' के अंश हैं। युष्माफ अस्माक में भी ‘क’ प्रत्यय है ! “युष्म'+कि = ‘युष्माङ्क' और अत्म+क'अस्माक’ ! परन्तु ‘युष्माकम्-अस्माकम् ती पुंस्त्री-नपुंसक तीन लिङ्गों में एफ से चलते हैं और यह “अ' प्रत्यय केवल पुल्लिङ्ग में चलता है--स्त्रीलिङ्ग में नहीं ! यह भेद कैसे हो गया ! उँह ! हो गया हो ग ! ऐसी छोटी-छोटी बातों में भाषाविज्ञानी 'महीं उलझते ।। हम ने तो श्रा' को पुंप्रत्यय माना है और इसी के प्रययु-बाहुल्य से “खड़ी-बोली' नाम पड़ा हिन्दी का; यह लिखा हैं । “भाषाविज्ञान' गहराई में उतरा है ! ६-‘आप’ प्रत्यय ‘मिलाप' आदि के लिए प्राप्' प्रत्यय है । मिल्+प्+अमिलाप । इस ‘आप’ प्रत्यय का विकास डा० टर्नर आदि ने संस्कृत के 'व' से बताया। है। त्व' से 'त्य’ और ‘त्य’ को ‘प्य' । इसी ‘प्य’ के धूर्य ' अरे आमा का लोप हो गया । बन गया-अाथ' ! : डा० टर्नर का परिचय यह कि डा० चाबूराम सक्सेना आदि हैं विद्यागुरु । और डा० सक्सैना की शिष्य-परम्परा में डा० उग्रना तिवारी आदि हैं। वैसे ‘विलाप' 'प्रलाप आलाप’ ‘होला' श्रादि के वजन पर हिंदी में *मिलाप' बना लिया हो; यह बात भी साधारण न समझ सकतें हैं। दुई तरह भाषा में शब्द गढ़ने की चाल देखी भी पार्टी है-इलाई ३ पर नहला' । 'दस’ मैं तो 'सु' है, 'इ' हो गई । परन्तु 'नौ' में कहाँ छै कोई चीज है ? स्पष्टतः ‘दहला के वजन पर नहला हैं। इसी तरह हिन्दी ने सुप्रचलित 'विलाप' आदि के वृजन पर मिलाप' बना लि; ऐसा भैरे जैसे साधारण व्यक्ति का विचार । परन्तु यह इतनी उथली चॐ हैं 6ि *भाषाविज्ञान के गाम्भीर्य में क्षुद्र समझी जाए र ! | 5: 5