पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६०४

________________

( ६०४ ) $---आर' प्रत्यय 'चमार' “सुनार आदि के लिए 'आर' प्रत्यय ठीक ही है और इस का • बिकास भी संस्कृत कार' से ठीक; परन्तु भाषाविज्ञानियों ने कार में भी यही प्रत्यय माना है और व्युत्पचि दी हैं—'स्कन्धकार' से ! यानी फहरि लोग कन्धे बनाया करते हैं ! जब 'लुहार सुनार आदि ‘कार-परम्परा में हैं, तो “कहार' ही क्यों हार’ अपने सिर ले ! यद्यपि बहू कन्चे से बोझ ढोता हैस्कन्धेन हरति’---श्कन्धहार' है; परन्तु फिर भी उसे अलम क्यों किया। जाए ! जैसे ‘कुम्हार’, उसी तरह कहीर' । “यथा कर्तरि तथा शब्दरि' ! *अस्माकं तु भाषाविज्ञानिनां शब्दरि प्रयोजनम्,, मत्वर्थरि ।। ६‘आरी' प्रत्यय भंडार' कोठार? आदि से अरी' प्रत्यय कर के भंडारी कोठारी श्रादि शब्द सिंद्ध किए गए हैं। भंडारारी’ कोठारी' शब्द इस लिए नहीं बने कि प्रकृति के ‘ए’ का लोप हो गया है ! केवल “ई” प्रत्यय से काम चल सकता था; परन्तु गम्भीरता न आ पाती । ६-‘बाल’ और ‘बाला *प्रयागवाल’ ‘अग्रवाल आदि में जो ‘वाल है, उस की व्युत्पत्ति संस्कृत *पाल’ से बतलाई गई है और शाड़ी बाला' ठेलेवाल आदि में जो ‘वाला है, उस की व्युत्पत्ति 'पालक' से बतलाई गई है। पालक>बालश्र >वाला', “प' को वैसे 'ब' प्रायः हुआ करती है; परन्तु यहाँ विशेष स्थिति होने से 'ब' ही समझिए ! |१०-'सर' ‘सरा दूसर' 'दूसरा आदि में इष्ट 'सर' 'रा' की उत्पत्ति डा० हार्नले के अनुसार कुछ भाषा-विज्ञानी संस्कृत ‘सुतः से मानते हैं और कुछ डा० चटर्जी के मतानुसार संस्कृत 'सर' से मानते हैं, जो ‘सृ' धातु से ही बना है। सू' का अर्थ है रेंगना' । “दूसरा' आदि रेंगते हैं न ! ‘सँडहर' भनीहर' आदि के लिए ‘इर' प्रत्यय माना गया है ! हम लोग यहाँ कोई प्रत्यय-फूलना न कर के शब्द-विकास समझा देते हैं । भाषाविज्ञान लोग इस ‘हर' की व्युत्पत्ति संस्कृत 'मधुर' से मानते हैं !