पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/६७

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( २२ ) भेद कैसे होता परन्तु उस भिन्नता में गहरी एकता भी बैठी हुई है, जो देखने की चीज है ।

           खड़ी बोली की विशेषताएँ

रेवड़ी बोली की मुख्य विशेषता का उल्लेख ऊपर हुआ है अब इसकी कुछ अन्य विशेषता पर ध्यान देना चाहिए, जो इसे अवधी तथा अज- भाषा अादि से पृथक् करती हैं । १ का लो। विभक्ति तथा अव्यय के ‘ह' का लोप खड़ी बोली की ( राष्ट्रभाषा हिन्दी की ) एक प्रमुख विशेषता है ! यह लोप कहीं निथ' होता है, कहीं वैकल्पिक और झहीं होता ही नहीं । हिन्दी में भी अव्यय समुञ्चायक है, जब कि ब्रजभा में ‘डू' है। राम भी चलेगा' को व्रजभाप में महू लैग' कुहेंगे और पूर्वी बोलियों में हैं। 6 लोप हो कर सन्धि हो जाती है-रामौ चलि है । 'अ' तथा ऊ मिल कर हो गए हैं । झी-कभी ब्रजभाषा कविता में भी लोप-सन्धि दिखाई देते हैं-ऊखौ लई उखारि”। बिहारी के इस 'ऊखौ पद में ऊख हू विच्छेद हैं । ह' का लोप और 'ऋ' तथा 'ऊ' को मिल झर' ‘-ऊखौ । कुछ लोग अखौ आदि को अकारान्त संज्ञा मानने के भ्रम में पड़े हैं ! कुछ ऐसे भी हैं, जो अत्री-सुलभ उकारान्त संशः का आर विकसित रूप यह

  • ौकारान्त प्रयोग बतलाते हैं ! ऊपर हम कह श्रद हैं कि संज्ञा--विशेष

आदि में वहाँ 5 पुलि-एक वचन में यथास्थान दिखाई देता है, बहु- बच्चन में या स्त्री-लिंग में नहीं । “बहन' का “बहनु” वा “आँख का ‘अाँखु कभी न होगा । “मीचु’ स्त्रीलिङ्ग में दृष्ट 3' धु' प्रत्यय नहीं हैं; विकास-प्राप्त रूप है-मृत्यु-मिचु>भीचु । ऊख' लिङ्ग संशा है । ‘इक्षुईख> ऊख के विकास-क्रम से स्पष्ट है कि मूल शब्द का अन्त्य ‘उ' इसीलिए छाँट दिया गया है कि ‘ख’ ‘ख’ को स्त्रीलिङ्ग बनाना था-मधुरता के कारण । और उस पुल्लिङ्ग- एक वचन के ‘3' फो ‘ौ'कभी होता भी नहीं है । सो, हिन्दी की ‘अपन' सन्धियाँ न जानने-समझने का यह सब परिणाम है ! यहाँ हम ‘र्भ।' तथा 'हू की चर्चा कर रहे थे और कह रहे थे कि हिन्दी में जहाँ भी रखा है, वहाँ इसकी दूसरी बोलियों ने दू’ लिया है। परन्तु राष्ट्रभाषा ॐ 'हू' से कोई चिढ़ नहीं है । कहीं इसे ग्रहण भी किया है, एक