पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/७१

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  • उसे में संश्लिष्ट विभक्ति ( ‘हि’ हू-लोप के साथ, सन्धियुक्त ) है । बीच में

कोई दूसरा शब्द आ ही नहीं सकता है परन्तु विश्लिष्ट ‘को' विभक्ति के साथ----‘उसी को भेज दो प्रयोर होता है। हाल ही प्रधान मंत्री चीन गए थे, यौं कोई कोई हाल ही में गलत लिख-छाप देते हैं। जहाँ मुद्रों को आदेश दिया या है कि में' आदि विभक्तियाँ मिला कर छापो, वहीं हाल ही में दि छपता है । प्रकृति इल' में विभक्ति { } नहीं, अव्यय ( “ही' ) में लग जाती है | अव्यय ( ‘ही’ ) इतना जोरदार है कि बीच में आ कूदता है--‘गाड़ी छूटने ही वाली है। ये प्रत्यय ( ‘बदला आदि ) भी कहीं अलर रहते हैं । बीच में ही | प्रासंकि चर्चा बढ़ गई । हम इह यह रहे थे कि तुम ने ही’ के साथ बैकल्पिक प्रयोग तुम्हीं ने अादि भी हिन्दी में चलते हैं। ब्रजभाषा तथा अवधी अदि में यह बात नहीं । वहाँ “तुम ही” “हम ही रहेंगे । एक छात और ! 'तुम ही ने’ की चगह ‘तुम ने ही प्रयोग हिन्दी को अधिक ग्राह्य है । प्रकृति और प्रत्यय के बीच सदा ही अव्यय दिः श्रा कुर्दै, यह अच्छा नहीं लगती। उसीने’ ‘तुम्हीं ने आदि तो लोप-सन्धि के कारण एकाकार-से हो गए हैं-अव्यय पृथक् जान ही नहीं पड़ता । । | इसी से झादि की तरह ब्रजभाषा में प्रयोग नहीं होते। वहाँ ज्यों का त्यों 'ही' बराबर रहता है----‘याही विधि तें' । याही सौं’ आदि में प्रकृति- प्रत्यय के बीच ‘हीं है। यह बात ब्रजभाषा की है। ब्रज की बोली में तो ह' का लोप प्रायः हुआ ही करता हैं—याई ते’ ‘हस जात ६ ( याही ते, हम जात हैं ) ! राष्ट्रभाषा में बोल-चाल में कभी-कभी ‘काश्मीर तो इसारा हुई है। जैसे प्रयोग होते हैं। है ही, हुई। स्पष्टता के लिए और जोर देने के लिए क्रिया की पुनशक्ति ‘हुई है। राष्ट्रभाषा में एक और बड़ी विशेषता हैं, इसके अभी, कभी, तभी आदि प्रयोग । अन्यत्र अब हीं, तब ही आदि चलते हैं । राष्ट्रभाषा में अव्ययों के अन्त्य 'अ' का लोप और ” तथा “ह' के हु’ को मिलकर “भू’ ! 'अभी, कभी अादि । राष्ट्रभाषा की 'ने' विभक्ति 'ने' विभक्ति भी राष्ट्रभाषा की अपनी विशेषता है ! ब्रजभाषा तथा अवधी आदि में 'ने' नहीं हैं ! मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो' श्रा