पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/७२

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( २७ ) देखते हैं, पर राष्ट्रभाषा नै' के बिना न चले-“मुझे दाऊ ने बहुत खिझाया है ।” ने विभक्ति के अभाव में कभी-कभी भूतकाल की कर्मवाच्य क्रिया झमेला पैदा कर सकती हैं-लछिमन तबहिं निषाद बुलवा' कहा जाए, तो कतकर्म समझ में भ्रम हो सङ्कता है, क्योंकि हिन्दी में त7 इसकी ‘बोलियों में कारक-विन्यास में आगे-पीछे का कोई विशेष विधान-नियमन नहीं है। संस्कृत में भी ऐसा ही है। लक्ष्मण के लिए एक वचन नहीं आ सकता, श्रादर में बहुवचन उचित है और निषाद लक्ष्मण को भला क्या बुलाए गा; इस औचित्य से ही ‘लछिमन को क समझ सकते हैं । भरभ वन सीता तब चोला' में देखिए, 'सीता' के आगे ने विभरि है नहीं, छो बतलाती कि कर्मवाच्य क्रिया है-'वचन' के अनुसार पुल्लिग। लोग 'सीता'--'बोल” के चक्कर में पड़ जाते हैं । कर्तृत्वाच्या बोला हमझ लेते हैं । ने' विभक्ति से भाषा में कितनी स्पष्टता आ गई है, यह यथार्लग झाए । यह विभक्ति हिंद में संस्कृत के 'बालकेन” से इन अल करके बनाई है। इन' को वर्ण-व्यत्यय से ‘स इ' और फिर 'अ' तथा 'इ' में सन्धि | इस प्रकार ने विभक्ति चना कर हिन्दी ने इसके प्रयोग में भी एक कौशल दिखाया है। संस्कृत में तथा प्राकृत में तृतीयु! विभक्ति का प्रयोग कर्ता, करण तथा हेतु आदि विविध अर्थों में होता है। परन्तु हिन्दी को यह चौथ अच्छी नहीं ली । यहाँ केवल कर्ता कारक में ‘ने का प्रयोग बँा हुआ है, न करण में, न हेतु आदि में । ६, कता-कारक में प्रयोग ने' झा हिन्दी वहीं करती है, जहाँ संस्कृत तथा प्राकृत में तृतीया का होता है, सकर्मक क्रिया के भूतलिक कर्मवाच्य तथा सादाच्य रूपी के साथ } संस्कृत प्राकृत में कर्मवाच्य तथा भाववाच्य प्रयोग तिङन्त-कृदन्त दोनों तरह के होते हैं, भूतकाल में । परन्तु हिन्दी ने एकहीं लाइन पकड़ी है भूतकुल में केवल कृदन्त, तिङन्ह मिले कुल नहीं । कृदन्त ( भूतकाल झी ) क्रियाएँ कर्तृवाच्य भी होती है,---राम सोया, लड़की सोई। यह ‘ने का प्रयोग न होगा, जैसे कि संस्कृत में रामः सुतः ‘बालिका सुहा' । सहायक क्रिया ( फोल प्रकट करने के लिए तिङन्त ( है ) रहती ही है----‘लड़का सोया है’----

  • बालकः सुप्तः अस्ति।