पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/७३

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परन्तु कर्मवाच्य तथा भाववाच्य भूतकालिक कृदन्त प्रयोगों में 'ने' विभक्ति अवश्य रहेगी। १-लड़की ने फल खाया-लड़के ने रोटी खाई २-लड़की ने दो दिया ! हम ने भी पढ़ा लिखा हैं पहला कर्मवाच्य और दूसरा भाववाच्य प्रयोग है—‘बालिका फलं भुक्तम् ‘बालिका रुदितम् ।। नै’ विभक्ति संस्कृत से ली और भूतकाल में प्रयोग-पद्धति भी वही रखी, परन्तु बड़ी सुविधा हिन्दी ने यह कर दी कि सभी संज्ञाओं के आगे केवल ने लगाने से काम चल जाता है । संस्कृत-प्राकृत में सभी संज्ञा-सुर्वनाम के ( तृतीया के ) पृथक्-पृथक् सैकड़ों रूप बनाने पड़ते हैं ! परन्तु हिन्दी में सीधी एक लाइन चली जाती है, देखिए- संस्कृत हिन्दी १---बालन संहिता पठिती '१–बालक ने संहिता पढ़ी : २-बालिकथा संहिता पठिता २-—बालिका ने संहिता पढ़ी ३--कविता संहिता पठिता ३–कवि ने संहिता पढ़ी ४—पित्रा संहिता पठिवा ४-पिता ने संहिता पढ़ी ५–सरस्वत्या संहिता पठिता ५ –सरस्वती ने संहिता पढ़ी ६–बध्दा संहिता पठिता। ६-बहू ने संहिता पढ़ी ७–विदुषा संहिता पठिता । ७-विद्वान् ले संहिता पढ़ी ८-शूना संहिता पठिता। ८–युवक ने संहिता पढ़ी ६–सबैः संहिता पठिता ६.---लब ने संहिता पढ़ी १०–केनचित् संहिता पठिता १०किसी ने संहिता पढ़ी इसी तरह विभिन्न स्वरान्त तथा व्यंजनान्त सहस्रों शब्दों के पु०- स्त्री० तथा नपुंसक लिंगों के तीनों बुन्दनों में अनन्त रूप कृदन्त कर्मवाच्छ तथा भाववाच्य क्रिया के फत कारक में ( संस्कृत तथा प्राकृत में ) बनाने पड़ते हैं; परन्तु हिन्दी का सीध-सरल अपना मार्ग है । एक सीधी लाइन है, बद- लली नईं । हिन्दी ने पैतृक सम्पत्ति लेकर उसको अपनी सुविधा के अनुसार उपयोग किया है । इस 'ने' विभक्ति ले अहिन्दीभाषी जन बहुत झंझट में पड़ते थे; क्योंकि “राम रोटी खाता हैं तथा राम दे रोटी खाई एक ही पद्धति की क्रियाएँ । 1