पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/७९

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है। विद्वानों का भाषण होता है; परन्तु कुत्तों के भौंकने को ‘पश' कहते हैं। परन्तु हिन्दी में दूसरी प्रक्रिया है। यह मात्रा बढ़ाकर लघुता प्रकट करती है । लक्ष्मण' का तद्भव रूप ‘लछिमन' इता हैं। तद्भव रूप में पुविभक्ति दानी चाहिए; पर न लगेगी; क्योंकि एकवचन में उसका प्रयोग होता है---पुल्लि एकवचन्द्र उससे प्रकट होता है और हिन्दी दर में एक व्यक्ति के लिए भी बहुवचन देती है । इसलिए लछिमन में पुंविभक्त ने लगे । परन्तु लघुता प्रकट करने के लिए उसका प्रयोग होगा । किसी छोटे को बुलाने में लछिमना, परसा, घसीटा आदि शब्द चलते हैं। | राष्ट्रघा के विकास में स्वर-लाधव पर भी ध्यान रहा है । भगिनी' का विकास अवध तथा बैसवाड़े आदि में 'बहिं नी’ हुआ, जिसे राष्ट्रभाषा ने ‘बहन बना लियो । संबुद्धि> समुझि ( पूरब में j-मुझ तुम्हारि नीकि है बहिनी' । राष्ट्रभाषा में 'समझ' है । तुम्हारी समझ ही तो ठहरी । इसी तरह अग्नि> श्रागि>‘ारा' आदि । विकास-क्रम में स्पष्ट प्रतिपचि का सबसे अधिक महत्व है । संस्कृत के ‘पत्र' शब्द का विकास ‘पचा’ हुआ । ‘पञ' से 'प' और फिर उसमें पुंवि- भक्ति यह विकास वृक्ष के अवयव-विशेष के लिए ही हुआ ! ‘पदा अाया फहने से ‘चिट्ठी आई’ कोई न समझ लेगा । इसके लिए पत्र आया' कहना होगा । हाँ, ‘पाती कहने से चिट्ठी समझी जाएगी, जरूर । 'पिया न आए, पाती न आई । ‘पत्ता’ का स्क्रीलिङ्ग तो ‘पत्ती' बनती है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में पात’ बना है, 'पत्र' से { वह ‘पाल' भी हिन्दी में एक तरह से चलता है-“साग-त' । परन्तु पचे' की जगह न चले । “पेड़ से पता गिरा' कहेंगे, ‘पात हि नहीं । तो, सात-पात' में जब 'पति' चलता है, तो फिर उसके स्त्रीलिङ्ग रूप पात' से 'चिट्टी का बोध कैसे होने लगा ? अस-

  • भव है ! ‘पात' से वह पानी नहीं है, संस्कृत पत्र का विकास है। पूर्वी

क्षेत्रों में भी छोटे चं को ‘पत्ती' ही कहते हैं, “ती” नहीं । पत्र’ बोलना न त हो, सो बार नई है । 'चिट्ठी-पत्र' में “पत्री' ही चलता है-'पाती नहीं । पत्र में अपनी पुढभक्ति लगाकर हिन्दी ने पत्रा' तद्भव रूप बना लिया हैं । यु-पञ्चाङ्ग, जे प्रतिसंवत्सर नया बनता-चलता है । 'नया' नव’ संस्कृत शब्द् का हिन्द-रण्य है : ‘व' को “य' और अपनी g'विभक्ति । अन्यत्र 'नवा' लता है-*नवा काल' झाठी का सुप्रसिद्ध पत्र | हिन्दी में ‘नश्री सूम' 'नया युग' होगा, या फिर नव युग रहेगा । अवध तथा बैस-