पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/८०

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वाड़े में धु' की ही ओर अधिक झुकाव है । आया-गया' की जगह वह ‘ावा-गवा’ रूप चलते हैं । वहाँ “नवा' चलता है। हिन्दी ने कुछ शब्द एक श्रृंखला के रूप में भी बनाए हैं। माता के लिए ‘भा एक छोटा-सा मधुर शब्द बच्चों ने बनाया । बहुत ही सुगम शब्द है । ‘स: स्त्रीलिङ्ग शब्द है, इसलिए {का के, की या *सा, से, सी' की तरह) वह बदलता नहीं है--‘मा का कपड़ा, मा के कपड़े । “मा' को कभी भी ” या मी न होगा, क्योंकि मा’ में हिन्दी की वृह पुविभक्ति तो है ही नहीं । जैसे “लता' के रूप-हता को लतः क’ आदि, वैसे ही ‘म’ के रहें । “मा’ फी द्विरुक्ति कर के माया' शब्द बना, मा के भाई के लिए। यह भी वैसा ही सरल ! 'मामा' में भी वह पुविभक्ति नहीं है, “मा' की ही द्विशक्ति हो गई हैं । अर्थ-प्राधान्य से पुलिङ्ग । इसके रूम भी भासा को ‘मामा ने आदि होंगे, मामे को जैसे नहीं है इसलिए कि यहाँ भी वह पु विभक्ति नहीं है और इसीलिए बहुवचन में भी ‘मामा' ही रहेगा, ‘मामे न होगा-हमारे दोनो मामा आज आ गए। | 'मामा' की ही बुराबरी के 'काका' चाचा' हैं, नकल पर गढ़े गए शब्द । यहाँ भी का' तथा 'चा' की द्विशक्ति है । पुविभक्ति यहाँ भी नहीं है । इस लिए ‘मामा' की ही तरह इनकी रूप रहेंगे । ‘दादा' और 'नाना' भी इस तरह हैं । “मौसी' भी इसी कोटि में हैं। परन्तु उसकी निष्पत्ति भिन्न पद्धति पर हैं । मा की बहन भी ‘मा-सी ही होती है। वह ‘मासी हो गई; पर उसका पति “मा-सा कैसे हो ? वह बन्न था-'मौसा । फिर भौंसा के सम्बन्ध से ‘मासी' भी मौसी’ बन गई । इमें यहाँ मतलब ‘मौस' से हैं। मौसा में ‘अ’ युविभक्ति से युक्त मा विद्यमान है; इञ्चलिए “मौसे ने कहा है रूर सुने पड़ते हैं । जो काका-काश्मा' आदि की लाइन पकड़े हैं, वे सौसर ने कहा भी बोलते हैं । यह इतना अन्तर | मौसी की सीधी व्युत्पचि हमने ‘भासी दी है। संस्कृत के “मातृवसा से भी ‘मौसी’ सम्भव है। वस्तुतः प्रातिपदिक “मातृध्वस्ट' से समझिए । 'ऋ' को “ई” । “मातृ' के ‘तु' का लोप और ‘’ का लेप । 'व' को उ” और मा +3=मौ । यो ‘मौसी और फिर इससे मौसा' । | परन्तु इन वड़े लोगों के अनन्तर ‘लाला’ भी ला" शब्द की द्विरुक्ति से है-यह भी ‘ला' और वह भी ‘ला' | अनुकरण या वजन पर शब्द् गढ़ने की