पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(४५)

सुविधा रहेगी । एक उदाहरण लीजिए। कान्दपुर के इधर-उधर पकी हुई दाल को पइिती' कहते हैं । अच्छा शब्द है । परन्तु राष्ट्रभाषा में ‘दाल के साथ रो’ तो सब भझ लेंगे; किन्तु ‘पहिती के साथ रोटी' कहाँ कहाँ के समझ सकेंगे ? उत्तर प्रदेश में ही सर्वत्र जब ‘पहिती’ शब्दं पहेली व जाएगा, तो हिन्दी-प्रदेश की बात ही क्या ! इसी तरह राष्ट्र-भाषा में बँगला-शब्द देने से महाराष्ट्र-गुजरात आदि को और ठेठ गुजराती-मराठी शब्द देने से आन्ध्र-उत्कल आदि में कठिनाई बढ़ेगी । हाँ, जो प्रादेशिक शब्द बहुत जरूरी हो, जिसका पर्याय संस्कृत में भी न हो, उसे अवश्य राष्ट्रभाषा में ले लेना होगा। कुछ शब्दों को तद्भव भी करना होगा, परन्तु व्यक्ति-नाम तो तद्रप ही रहेंगे, डॉ० सीतारमय्य; सिं० राघवन अादि ।। । विदेशी ( फारसी, अरबी, अँग्रजी आदि } भाषाओं की स्थिति भिन्न हैं । इन भाओं के जो शब्द हिन्दी में श्री फर घुल-मिल गए हैं, वे रहेंगे ही । कोट, बटन, रूमाल वात आदि ऐसे ही शब्द हैं । परन्तु नए शब्द लेने की बात तब तक नहीं उठती, जब तक संस्कृत से तथा प्रादेशिक भाषाओं से पूर्ति सम्भव हो । इसके बाद ही किसी विदेशी भाषा की ओर देखना होगा । हिन्दी दे तो विदेशी भाषाओं में भी तारतम्य किया है । एशिया तथा योरप में हिन्दी ने भेद किया है। एशिया की भाषाओं से संज्ञाएँ ही नहीं, विशेषण भी हिन्दी ने ले लिए हैं-‘ताजी खबर हैं' हिन्दी में चल सकता है, परन्तु एक न्यू खवर आज है' ऐसा न चलेगा ! तीन सौ वर्षों के संसर्ग के बाद भी हिन्दी ‘हॉट पानी नहीं माँगती गर्म पानी पसन्द करती है । कोई भी विशेष योरप की किसी भी भाषा का हिन्दी ने नहीं लिया; संज्ञाएँ जरूर ली हैं। -अश्य' की जगह जरूर तो चलता है, पर कोई अँग्रेजी शब्द नहीं श्रा सकता । परन्तु, जब, तब, यहाँ, वहाँ, अादि अव्ययों की जगह झर्भी कोई फारसी को भी अव्यय न आए। हाँ, “सर्वत्र' जैसा कोई संस्कृत-अव्यय अवश्य ग्राह्य है; क्योंकि इस अर्थ में हिन्दी में अपना स्वतंत्र कोई अव्यय बनाया नहीं। ‘सर्वत्र की जगह फारसी आदि का कोई अव्यय न चलेगा। | यह हम हिन्दी के विकास तथा शब्द-ग्रहण की चर्चा कर रहे हैं; प्रसंगवश । वस्तुतः व्याकरण से इन बातों का कोई सीधा विशेष संवन्ध नहीं । व्याकर तो शब्द-प्रयोग पर विचार करता है और प्रयोगकृत शब्दों के रूपान्तर पर । जीवित-जागृत भाषा में शब्दों के आदान-प्रदान या निर्माण का काम चलता ही रहता है। आवश्यकता के अनुसार वह सब होता है । व्याकरणकार के बताए