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नागरी लिपि और लिखावट


हिन्दी जिस लिपि में लिखी जाती है, उसका नाम 'नागरी' है। उर्दू फारसी-लिपि में अब भी चल रही है । रोमन-लिपि में हिन्दी र ‘हिन्दुस्तानी रूप जो अँग्रेजों ने चलाया था, वह अब समानुप्राय है ।। | नागरी लिपि में ही संस्कृत लिखी जाती है । संस्कृत की मुख्य लिपि नगरी है; जैसे बँगला आदि प्रादेशिक लिपियों का भी प्रयोग लोग करते हैं परन्तु संस्कृत के सार्वभौम प्रचार की दृष्टि से बंगाली, मदरासी, गुजराझी आदि सभी प्रदेश के विद्वान् नार? लिदि का ही प्रयोग करते हैं । संस्कृत के अति- रिक्त एक अन्य आधुनिक भारतीय भाषा भी नागरी लिपि मैं चलती है-

  • मराठी’ | बँला, उड़िया गुसराती, तमिल, कन्नड़ आदि भाषाओं की

अपनी-अपनी पृथक् लिपियाँ हैं। गुजराती, पंजाबी, उड़िया आदि की वर्द- मान लिपियाँ नागरी के ही रूपान्तर हैं। हमने श्री मो० सत्यनारायण ('मदरास : के एक भाषा में जाना कि दक्षिण भार की लिपियों का विकास भी उसी ‘ब्राह्मी से है, जिससे नागरी का । लगभग सौ वर्ष पहले झलकक्षा-हाईकोर्ट के जस्टिस श्री शारदाचर मित्र महोदय ने एक बहुत बड़ा राष्ट्रीय एकता का उद्योग किया था । वे चाहते थे कि भारत भर की सूत्र आषाओं की एक ही लिपि रहे और इसके लिए उन्होंने नारा’ को चुना था । मित्र महोदय ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति इस महोद्योग में लगा दी थी। उन्होंने एकलिf-विस्तार परिषद्” नाम की एक संस्था झलकत्ते में स्थापित की थी और उसके द्वारा जुन्य भर उद्योग करते रहे कि किसी तरह नागरी लिपि देश स्वीकार कर ले ! उन्ले इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए क मासिक पत्र भी निकाला था, जिसमें सभी आर- तीय भाषाओं के लेख नागरी लिपि में प्रकाशित होने थे । देश का दुर्भाग्य, मित्र महोदय का उद्योग सफल न ह स ? अब आज-कल फिर चर्चा उठ रही है कि नागरी लिपि को सभी भारतीय भाषा की सामान्य-लिपि बना दिया जाए; जैसे योरोपीय भाषाओं की एक लिपि रोमन है । पता नहीं, आगे क्या होगा ! नागरी लिपि पुरानी ‘ाली लिपि का रूपान्तर है, ऐसा कहा जाता है । नाबारी’ नाम पड़ने के अनेक झारा बताए जाते हैं। मैं तो समझता हूँ, देश की रष्ट्रभाषा किसी समय जो प्राकृत थी, उसका नाम 'दार’ : { वह