पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/९३

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नगर-भाषा' या नागरी भाषा जिस लिपि में लिखी जाती थी, उसे भी लोग ‘नागरी' कहने लगे । जो भी हो, इस लिपि का नाम 'नागरी' है । इसकी लिखावट में कुछ परिवर्तन करने के उद्योग हुए हैं, हो रहे हैं । इस पर भी विचार करना चाहिए। नारी-लिपि का विस्तार करने की दिशा में इधर एक बहुत बड़ा काम हुअा है-नागरी लिपि में तार भेजने की सुविधा । इसे लोग हिन्दी में तार भेजने की व्यवस्था' कृहते हैं, जो गलत हैं। हिन्दी में तार तो पहले भी दिए जाते थे । मै सन् १९२६ में लखनऊ ( ‘माधुरी कार्यालय में ) था । एक दिन सम्पादझ जी ( १० कृष्णबिहारी मिश्र ) ने श्री रामदास गौड़ एम० ए० फा भेजा हुश्री एक तार दिखाया रोमन लिपि मैं टाइप किया हुआ था । लिखा थ’ ‘लेख वापस भेजिए संशोधनार्थ । इसकी देखा-देख मैंने अपने भतीजे के विदाई पर बधाई का तार भाई साहब को भेजा, हिन्दी में । सन् १९३५ की बात है । केवल ‘बधाई' शब्द लिखा था, रोमन में । कानपुर तार पहुँचने पर लोग समझ न पाए कि क्या है ! अंग्रेजी की ‘डिक्श्नरी सब उलटदे-पलटते रहे ! कुछ पता न चला १० तब तार देकर पूछा-‘क्या बात है ? तार समझ में नहीं आया। यह रोभने-लिपि की अनिवार्यता अब हट गई है। नागरी लिपि में अपि हिन्दी, संस्कृत, बँगला, गुजराती श्रादि चाहे जिस भाया मे तार दे सकते हैं, जहाँ उसकी व्यवस्था है। यही नहीं, अंग्रेजी भाषा का भी तार नागरी लिपि में दे सकते हैं, साफ पढ़ लिया जाएग-‘कम सून' हैंड मनी' श्रादि । रोमन लिपि में हिन्दी-शब्द जिस गड़बड़ी में पड़ते थे, उसमें नारी लिपि अंग्रेजी-शब्दों को नहीं डालती । नागरी तार-प्रणाली गरे के तार-झार्यालय में तीन-चार उद्योगी कर्मचारियों ने अपने बलबूते पर प्रकट की । सरकारी काम पूरे काय करके वे लोग अठ-आठ घंटे इस काम में जुटे रहते थे। जब वे अपने उद्योग में सफल हो गए, तो उच्च अधिकारियों सूचित किया और सरकार ने यह प्रणाली अशक रूप से स्वीकार करने की कृपा की ! उन स्वनामधन्य कर्मचारियों के प्रति कृतज्ञता शृङ्गट कारन चाहिए ! मै उनके नाम भूल गया हूँ। पता लगा कर फिर कभी लिखने का यत्न करू ग ! नागरीप्रचारिणी १ सय ) काशी तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन ( प्रयाग ) में उन देश-प्रेमियों के तैल-चित्र लगने चाहिए ।