पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/९४

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परन्तु बार बार शिकायत की जा रही है-हिन्दी तार-प्रणाली' से लोग लाभ नहीं उठा रहे हैं ! इसके लिए जरूरी है कि जहाँ-जहाँ नागरी-तार- प्रणाली जारी कर दी गई है, वहाँ साधारणतः रोमन में तार देने की व्यव. स्था बन्द कर दी जाए । अंग्रेजों ने रोमन का प्रचार अपीलों के द्वारा नहीं किया था । हाँ, विदेशों में जाने वाले हार रोमन लिपि में लिए ही जाएँगे। अब नागरी-लिपि की लिखावट में कुछ हेर-फेर करने का जो प्रयत्न चल रहा है, उसे भी एक नजर देख लीजिए । 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति' (वद्ध ) ने लिखावट में कुछ हेर-फेर किया है । इस के पहले लोकमान्य तिलक ने इस सम्बन्ध में कुछ उद्योग किया था । वर्धा-प्रणाली इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, इन पृथक् वर्ण-संकेतों की जगह 'ऋ' में ही मात्रा लगा कर अि' 'ऋ' ‘अ’ ‘क्रे’ ‘छै' रूप में उन स्वरों को प्रकट करती है । इस प्रणाली का बहुत प्रचार हो गया है; परन्तु फिर भी अधिकांश हिन्दी-जगत् ने इसे स्वीकार नहीं किया है; यद्यपि पहले से ही चल रहे ” तथा “ौ' के संकेत उसके पक्ष में हैं। | इधर उत्तरप्रदेश सरकार ने एक और नई लिखावट अपनाई है । ‘बिद्यार्थी को इस लिखावट में 'वीद्यारथी' लिखा जाता है । इस लिखावट का लोगों ने बहुत विरोध किया है। पता नहीं, यह स्थायी चीज होगी, या समाप्त हो जाएगी । जनता ने इसे ग्रहण नहीं किया । बड़ा विरोध हुआ । अब इस पर सरकार फिर से विचार करने वाली है ।। भाषा से लिपि एक पृथक विषय है और हमारा प्रतिपाद्य विषय भाषा से ही सम्बन्ध रखता है । इस लिए, इसे यहाँ बढ़ाना उचित नहीं । हिन्दी नागरी-लिपि में लिखी जाती है; इस लिए साधारण चर्चा कर दी गई। हिन्दी-राष्ट्रभाषा के रूप में हमारी राष्ट्रीय एकता का एक सुदृढ़ आधार ( कुछ लोगो में ) संस्कृत भाषा को ही कदचित् उस समय विदेशी शासकों ने पाया, जब कि उनका यहाँ प्रवेश हुआ । सम्भवतः प्राकृत परम्पर की कोई भी जनभाषा उस समय ऐसी ॐ इसी पिछले नवंबर ( १६५७ ) में सरकार ने अपना वह 'लिपि- सुधार' वापस ले लिया ।