साथ ही गृहीत विदेशी शब्दों को अपने व्याकरण के अनुसार चलाया जाए, तो यह निश्चित रूप से अपनी ही भाषा है। ऐसा उद्योग प्रारम्भ हुआ।णअनावश्यक विदेशी भाषा का शब्द-समूह हटा दिया गया; जो शब्द स्वारस्य से रम-खुप गए थे, उनका प्रयोग हिन्दी-व्याकरण के अनुसार किया जाने लगा और लिपि नागरी बरती जाने लगी-तो उर्दू बन गई हिन्दी । इसी बात को लेकर लोगो ने लिख दिया है कि उर्दू से हिन्दी बनी है ! यदि किसी भारतीय बालिका को ईरानी वेश-विन्यास में कर के बुर्का ऊपर डाल दिया जाए और नाम उसका सरोज' से 'गुलशन' जैसा कुछ कर दिया जाए, तो सचमुच' वह कुछ विदेशी-सी ऊँचने लगेगी ! परन्तु फिर उसका वह विदेशी-परिधान तथा नाम बदल कर सब कुछ पूर्ववतू कर दिया जाए, तो क्या यह कहा जाएगा कि ईरानी लड़की को हिन्दुस्तानी बना लिया गया है हाँ, कहा भी जा सकता है। वह कुछ विदेशी-सी बन गई थी; अब फिर हिन्दुस्तानी बन गई।
इस तरह अंग्रेजी शासन-काल में हिन्दी को लोगों ने अपनाया । अव इस में साहित्य-निर्माण की चर्चा होने लगी । इसके प्रति लोगों में आत्मीयत बढ़ने लगीं ।
‘भारतेन्दु' का उदय
आगे चल कर काशी में भारतेन्दु' का प्रादुर्भाव हुआ । इस समय हिन्दी
की गंगा तरंगित हो रही थी । देश भर में एक नव जागरण था । भारतेन्दु
( बाबू हरिश्चन्द्र ) ने दूर-दूर के हिन्दी-प्रेमियों को (हिन्दी के साहित्यिकों को)
अपनी ओर आकर्षित किया । एक प्रेम-संगठन हो गया। इस संगठन में
जादू का असर था। हिन्दी के रूप में राष्ट्रीयता का उदय हो रहा था ।
अंग्रज वड़ा दूरदर्शी होती है । वह विरोध के तरीके जानता है । भेद पैदा
कर देना उसे खूब आता है।
उस समय राजा शिव प्रसाद साहब उच्च राजकर्मचारियों में थे । शिक्षा विभाग पर राजा साहब का प्रभाव था | आपकी सेवा से प्रसन्न होकर सरकार ने 'राजा' तथा 'सितारे-हिन्द के खिताब दे रखे थे । राजा साहब ने हिन्दी के स्थान पर 'हिन्दुस्तानी' का समर्थन किया-
'न खास हिन्दी, न खास उर्दू,
ज़वान गोया मिली-जुली हो ।