पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/९९

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                                          थे । बिहार के शिक्षा-विभाग ने इस समय जो के लिए पाठ्य-पुस्तकें

बनवाई, उनमें 'हिन्दुस्तानी' का रूप ऐसा रखा गया कि लोगक्षुब्ध हो गए ! बेइम सीता’ ‘बादशाह दशरथ' 'उस्ताद वशिष्ठ' शब्द सामने श्रार ! काशी में हिन्दी साहित्य-सम्मेलन का जो अधिवेशन उन दिनों हुआ, उस में एक विहारी सजन ने ही इस संबन्ध में बिहार सरकार के प्रति निन्दा का प्रस्ताव रखा । चर्चा चली । संच' पर वहाँ देशरत्न बाबू { अब ‘डाक्टर’ ) श्री राजेन्द्र प्रसाद जी भी विद्यमान थे। उन्होंने ‘बेस सीता' आदि पर बड़ा आश्चर्य प्रकट किया और इन पुस्तकों को हवा देने का वचन दिया। फलतः वह प्रस्ताव वापस ले लिया गया। यह स्थिति उस समय थी ? अरे चल कर देश स्वतंत्र हुआ। अब भी राष्ट्रभाषा के पद पर हिन्दी’ हो, या 'हिन्दुस्तानी'; इस विषय में बड़ा राम्भीर समुद्र-मन्थन हुआ; परन्तु अन्ततः संविधान में ‘नागरी में लिखी हिन्दी ही राष्ट्रभाषा स्वीकृत हुई। यह है संक्षेप में, हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने की कहानी } विस्तार से इस .विषय को हमने ‘राष्ट्रघा का इतिहास' नाम के ग्रन्थ में लिखा है। जोरुचि रखते हों, वहीं पढ़ें।


हिन्दी का परिष्कार

अंग्रेजी शासन के प्रारम्भ में ही हिन्दी विदेशी परिधान से तो • दूर हो गई-उर्दू से हिन्दी रूप पृथक् हो गया; परन्तु स्वरूप में निखार २ श्राया ! नया-नया कास था । लोग ‘हुए’ को ‘हुथे' तथा 'हुवे लिखते रहे; विभक्तियों का प्रयोग भी ठीक न होता था । ‘को' की जगह “का’ और ‘का' की जगह ‘को' भी चलता रहा **पुस्तक को लो ' जैसे प्रयोग भी होते रहे । जो उर्दू के विद्वान् हिन्दी लिखने लगे, उनके पूर्व-संस्कार छूटे न थे; इसलिए मुशियाना हिन्दी लिखने लगे ! संस्कृत के पंडितों की हिन्दी में पंडिताऊपन भी रहा । धीरे धीरे यह सब ठीक हो गया और सन् १९०१ से १९२० तक अाचार्य पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी ने तथा उनके सहयोगियों ने भाषा- परिष्कार को वह कास किया कि देश उन का सदा ऋणी रहेगा । 'द्विवेदीयुग’ नाम से हिन्दी की थइ युग प्रसिद्ध है।