पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/११६

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पंचम म्यास्यांन १४५ मिलनेवाले छन्दों मे जिनकी प्रामाणिकता लगभग निःसन्दिग्ध है, वे छप्पय ही हैं। मुनि जिनविजयजी ने पुरातनप्रबंधसग्रह मे चन्द के नाम पर मिलनेवाले चार छप्पयों का उल्लेख किया है। उनमें से तीन तो मुनिजी ने स्वयं ही वर्तमान रासो से ढूंढ निकाले है। पुरातनप्रबंध के छप्पयों की भाषा अपभ्रंश है। मैंने बहुत पहले अनुमान किया था कि चंद हिन्दी-परपरा के श्रादिकवि की अपेक्षा अपभ्रंश-परंपरा के अंतिम कवि थे। यह बात इन छप्पयों से प्रमाणित होती है। इक्कु बाणु पहुवीसु जु पहं कईवासह मुक्कओं, उर भिंतरि खडहडिउ धीर कर्खतरि चुक्कट । वीअं करि संघीउं भंमइ सूमेसरनंदण । एहु सु गडि दाहिमओं खणइखुद्दई सइंभरिवणु । फुड छडि न जाई इहुलुभिउवारइ पलकउ खल गुलह नं जाणउंचदवलदिर किंन वि छुट्टइ इह फलह। -पुरातनप्रबंधसंग्रह, पृ०८६, पद्य २७५ एक बान पहुमी नरेस कैमासह मुक्यो । उर उप्पर थरहर या बीर कप्तर चुक्यो । वियो वान संधान हन्यौ सोमेसर नंदन । गादौ करि निग्रह्यौ पनिव गच्यौ संभरि धन । थल छोरिन जाइ अभागरौगड्यौगुन गहि अम्गरौ। इम जपै चंदवरहिया कहा निघ? इन प्रलौ ॥ -पृथ्वीराजरासो, पृ०१४९६, पद्य २३६ अगहु म गहि दाहिमओं रिपुरायखयंकर, कूड्डमंत्रु मम ठवओं एहु जंवूय (य?) मिलि जग्गरु । सह नामा सिक्खवउंजइ सिक्खिव वुझाई। जंपइ चंदवलिद्द, मज्झ परमक्खर सुज्झइ । पहु पहुविराय सइंभरिधणी सयंमरिसउणइ संभरिसि, कईवास विश्रास विसट्ठविणु,मच्छिबंधिवद्धओं मारिसि ।। -पु०प्र० सं०, पद्य २७६ अगह मगह दाहिमो देव रिपुराई पयंकर। कूरमंत जिन करी मिले जंबू वै जंगर ॥ मो सहनामा सुनौ एह परमारथ सुज्झ। अप्पै चंद विरद्द वियो कोउ एह न बुज्झै॥ प्रथिराज सुनवि संभरि धनी इह संभलि संभारिरिस । कैमास वलिष्ठ बसीठ विन म्लेच्छ बंधबंध्यौ मरिस ॥ -पृ० रा०, पृ०२१८२, १०४७५