पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/१२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११२
हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

x हिन्दी-साहित्य का विकास 'साखी शब्दी दोहरा' पद्धति पर कटाक्ष किया है, उसकी थोड़ी विवेचना कर लेना आवश्यक है। xxx कबीरदास के वीजक में इतने काव्य-रूपों का प्रयोग है- १ आदिमंगल (मंगलकाव्य) २ रमैनी (चौपाई-होहे) ३ शब्द अर्थात् गेय पद ४ ग्यान चौंतीसा अर्थात् वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर से प्रारम्भ करके पद लिखना ५ विप्रमतीसी ७ वसन्त ८ चाँचर ६ वेलि १. विरहुली (सॉप के विष उतारनेवाला गान) ११ हिंडोला १२ साखी (दोहे) यद्यपि बीजक जिस रूप मे श्राज मिलता है वह बहुत पुराना नहीं है तो भी यह मान लिया जा सकता है कि इसमे जितने प्रकार के काव्य-रूपों का प्रयोग है, वे सभी कबीरदास के समय में लोकप्रिय थे। तुलसीदास की भाँति कबीर ने भी अपने आस-पास के लोकप्रचलित विनोदों और काव्यरूपों को अपनाया होगा और उसमे अपने उपदेशों को भरकर जनता के उपयोग के लिये प्रचारित किया होगा। संत लोग प्रायः ही ऐसा करते श्राए हैं। कभी-कभी संतों ने लोक-प्रचलित ऐसे विनोद-रूपों का उल्लेख किया है जिनका साहित्य में बहुत बाद में प्रवेश हुआ है। ऋवीरदास के प्रयुक्त बहुत से काव्य-रूप जो बीजक में सुरक्षित है बाज भी जी रहे हैं, जैसे विरहुली सॉप का विष उतारने का गाना है। कबीरदास ने उसका प्रयोग विषयरूपी सर्प के विष उतारने के लिये किया है। कभी- कभी उनके द्वारा प्रयुक्त काव्य-रूपों की परंपरा काफी पुरानी भी सिद्ध होती है। आदिमंगल की चर्चा हम पहले ही कर पाए हैं। यहाँ एक-एक करके 'साखी सबदी दोहरा' पर विचार करना है। यह 'साली' शब्द गोरखपन्थियों के साहित्य मे भी मिलता है और कधीर-पन्यी साहित्य मे तो मिलता ही है। संभवतः बौद्ध सिद्धों को भी इस शब्द का पता था; क्योंकि काहपा के एक पद में 'साखि करव जालन्धरपाएँ मे जालन्धरपाद को साक्षी करने की बात है। यहाँ मतलब यह मालूम होता है कि जालन्धरपाद के वचनों को करहपा साखीरूप मे उल्लेख कर रहे हैं। धीरे-धीरे गुरु के वचनों को साखी कहा जाने लगा होगा । वौद्ध सिद्धों के थे उपदेश दोहा-छन्दों में लिखे गए थे | इसीलिये दोहा और साखी समानार्थक शब्द मान लिए गए होंगे। सरहपाद ने अपने एक दोहे में उसे 'उएस' या उपदेश कहा है। यही 'उएस' या उपदेश परवर्ती काल में साखी बन गया है । परवी