पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/२४

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प्रथम व्याख्यान वर्णन मे कवित्य है और वह कवित्व उपास्य वृद्धि से चालित है, उसी प्रकार राजशेखर सूरि के 'नेमिनाथफागु' मे 'राजल देवी' की शोभा मे कवित्व भी है और वह उपास्य बुद्धि से चालित भी है। कौन कह सकता है कि इस शोभा-वर्णन में केवल धार्मिक भावना होने के कारण कवित्व नहीं है - किम किम राजल देवि तण सिणगारु भणेवउ । चंपइगोरी अधोई अंगि चंदनु लेवउ ॥ खुषु भराविउ जाइ कुसुम कस्तूरी सारी। सीमंतइ सिंदूररेह मोतीसरि सारी ॥ नवरंगि कुंकुमि तिलय किय स्यण तिलउ तसु भाले । मोती कुंडल फन्निथिय विवालिय कर जाले ।। नरतिय कचल रेह नयणि मुंहकमलि तंबोलो। नागोदर कंठलउ कठि पुनु हार विरोलो । मरगद जादर कंचुयउ फुड फुल्लह माला । करे कंकणमणि-वलय चूड खलकावई बाला ॥ रुणुझुणु रुणुझुणु रुणुणएँ कडि धारियाली । रिमझिम रिमझिम रिमझिमिएँ फ्यनेउर जुयली ॥ नहि आलत्तउ बलवलउ सेअंसुय किमिसि । अंखडियाली रायमइ मिउ जोगइ मनरसि ।। (छाया) किमि किमि राजल देवी को सिंगार कहौ (इत)। चपक गोरी, अति घोई, अंग-चंदन लेपित ॥ खोप भरायौ जाति-कुसुम कस्तूरी सारी । सीमंतै सिन्दूर रेख मोतिन भरि धारी ॥ नव रॅग कुंकुम तिलक रतन-तिलक लसित माले । मोती कुंडल कान ठ्यो, विवालिय कर जाले (१) नर्मित कञ्चल-रेख नयन, मुख कमल तमोलौ । नागोदर कंठल कठे, पुनु हार विलोलौ ॥ मरकत जरीदार कंचुक फुरे फूलन माला। कर ककन मनिवलय चुड़ी खनकाई बाला ॥ रुनुमुनु रुनुमुनु रुनुकै कटि पर घाघरियाली । रिमझिम रिमझिम झमके पग नूपुर (सुखशाली) ॥ नख अलक्त पलवले सेत अमुक सँग सोहै । रागमयी ऑखियान पिया मन-रस ते जोहै ।