पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/३६

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प्रथम व्याख्यान लिखा जाने लगा, उन प्रदेशो की बहुत ही थोडी रचनाएँ हमे मिलती है बहुत ही थोडी। फिर भी मात्रा और विस्तार मे अत्यन्त अल्प इन रचनाओ का भी बहुत महत्त्व है, इन थोडी रचनाओं ने भी विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया है और अनेक विद्वानो ने इसके मूल रूप के समझने का प्रयास भी किया है। यह साहित्य अपभ्रश-कवि द्वारा निबद्ध उस अकिंचना सुन्दरी के समान है, जिसके सिर पर एक फटी-पुरानी कमली थी, गले में दस-बीस गुरियों की माला थी, फिर भी उसका सौन्दर्य ऐसा मनोहर था कि गोष्ठ के रसिकों को कितनी ही बार उठा-बैठी करने को बाध्य होना पड़ा- सिरि जरखंडी लोअड़ी गलि मणि अड़ा न बीस । तोचि गोट्ठड़ा कराविश्रा मुद्धए उडवईस ।