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हिन्दी-साहित्य का आदिकाल

हिन्दी-साहित्य का आदिकाल निजधरी कथानकों पर श्राश्रित काव्य से बहुत भिन्न नहीं होते। उनसे श्राप इतिहास के शोध की सामग्री संग्रह कर सकते हैं, पर इतिहास को नहीं पा सकते। इतिहास, जो जीवन्त मनुष्य के विकास की जीवन-कथा होता है, जो काल-प्रवाह से नित्य उद्घाटित होते रहनेवाले नव-नव घटनाओं और परिस्थितियों के भीतर से मनुष्य की विजय-यात्रा का चित्र उपस्थित करता है, और जो काल के परदे पर प्रतिफलित होनेवाले नये-नये दृश्यों को हमारे सामने सहज भाव से उद्घाटित करता रहता है। भारतीय कवि इतिहास-प्रसिद्ध पात्र को भी निजधरी कथानको की ऊँचाई तक ले जाना चाहता है। इस कार्य के लिये वह कुछ ऐसी कथानक-रूढियो का प्रयोग करता है, जो कथानक का अभिलषित ढंग से मोड देने के लिये दीर्घकाल से भारतवर्ष की निजंघरी कथाओं मे स्वीकृत होते आए हैं और कुछ ऐसे विश्वासों का आश्रय लेता है, जो इस देश के पुराणों में और लोक-कथाओं मे दीर्घकाल से चले आ रहे है। इन कथानक-रूदियों से कान्य मे सरसता पाती है और घटना-प्रवाह मे लोच पा जाती है। मध्यकाल में ये कथानक-रूदियों बहुत लोकप्रिय हो गई थीं और हमारे आलोच्य काल में भी इनका प्रभाव बहुत व्यापक रहा है। ___ संस्कृत मे ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम से सम्बद्ध काव्यों को 'चरित', 'विलास', 'विजय' आदि नाम दिए गए हैं। सबसे पुराना काव्य तो, जैसा कि पहले ही बताया गया है, 'हर्षचरित' नामक आख्यायिका ही है। इसके बाद पद्मगुप्त का 'नवसाहसाचरित' (१००० ई० के आसपास) और विल्हण का 'विक्रमाङ्कदेवचरित' नाम के ऐतिहासिक काव्य मिलते हैं। ये दोनों कान्य हमारे बालोच्य काल के प्रारम्भ के हैं और ऐतिहासिक काव्यों की तत्कालीन परिस्थिति को बताते हैं। विक्रमादेवचरित राजकीय विवाहों और युद्धों का काव्य है। राजाओं के गुणानुवाद के लिये उन दिनों ये ही दो विषय उपयुक्त समझे जाने लगे थे। दोनों में ही कल्पना का प्रचुर अवकाश रहता था और सम्भावनाओं की पूरी गु जायश रहती थी। यह वस्तुतः इन स्तुतिमूलक कल्पनाप्रवण काव्यों मे इतिहास का केवल सुदूर-स्पर्श मात्र ही है। इतिहास की दृष्टि से कुछ अधिक उपादेय पुस्तक कल्हण की राजतरगिणी है लेकिन उसमे मी पौराणिक विश्वासों और निजन्धरी कथाओं की कल्पना का गड्डमड्ड थोडा-बहुत मिल ही जाता है । तंत्र-मंत्र, शकुन-अपशकून के विश्वासो का सहारा भी लिया ही गया है। और प्राचीन गौरव की अनुभूति के कारण घटनाओं मे असन्तुलित गुरुत्वारोप हो ही गया है। मानव-कृत्य को अतिप्राकृत घटनाओं द्वारा नियंत्रित समझने के विश्वास ने इस अपूर्व इतिहास-ग्रन्थ को थोड़ा-सा इतिहास के आसन से दूर खडा अवश्य कर दिया है; पर सब मिलाकर राजतरगिणी ऐतिहासिक काव्य है। सन्ध्याकरनन्दी का रामचरित एक ही साथ अयोध्याधिपति श्रीरामचन्द्र का भी अर्थ देता है और बंगाल के रामपाल पर भी घटित होता है। इस प्रकार के कठिन व्रत को निर्वाह करनेवाले श्लिष्ट काव्य से इतिहास की जितनी आशा की जा सकती है, उतनी इससे भी की जा सकती है। यहाँ कवि को रामपाल के जीवन की वास्तविक घटनाओं से कम और श्लेष-निर्वाह से अधिक मतलब है। सोमपाल-विलास जल्हण का लिखा ऐतिहासिक काव्य है। 'जयानक' का