पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/९२

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चतुर्थ व्याख्यान (७) आकाशवाणी, (८) अभिशान या सहिदानी, (e) परिचारिका का राजा से प्रेम और अन्त मे उसका राजकन्या और रानी की बहन के रूप मे अमिशान, (१०) नायक का औदार्य, (११) पड् ऋतु और बारहमासा के माध्यम से पिरह-वेदना, (१२) हंस कपोत आदि से सन्देश भेजना, (१३) घोडे का आखेट के समय निर्जन वन में पहुँच जाना, मार्ग भूलना, मानसरोवर पर किसी सुन्दरी स्त्री या उसकी मूर्ति का दिखाई देना, फिर प्रेम और प्रयत्न, (१४) विजन वन मे सुन्दरियों से साक्षात्कार, (१५) युद्ध करके शत्रु से या मत्त हाथी के अाक्रमण से, या कापालिक की वलिवेदी से सुन्दरी स्त्री का उद्धार और प्रेम, (१६) गणिका द्वारा दरिद्र नायक का स्वीकार और गणिका-माता का तिरस्कार, (१७) भरण्ड और गरुड़ आदि के द्वारा प्रिय-युगलों का स्थानान्तरकरण, (१८) पिपासा और जल की खोज में जाते समय असुर-दर्शन और प्रिया-वियोग, (१६) ऐसे शहर का मिल जाना जो उजाड हो गया हो, नायक का हाथी आदि द्वारा जयमाला पाना, (२०) प्रिय की दोहदकामना की पूर्ति के लिये प्रिय का असाध्यसाधन का संकल्प, (२१) शत्रु-सन्तापित सरदार को उसकी प्रिया के साथ शरण देना, और फलस्वरूप युद्ध इत्यादि। भारतीय साहित्य के विद्यार्थियों को प्रायः ऐसी कथानक रूढियों मे टकराना पड़ता है। मैंने केवल इशारे के लिये कुछ रूदियों के नाम गिनाए हैं। मेरा उद्देश्य केवल इस बात की ओर अापका ध्यान आकृष्ट करना है। पद्मावत मे इन रूढ़ियों का व्यवहार है, और रासो में तो प्रेम-संबंधी सभी रूढ़ियों का मानो योजनापूर्वक समावेश किया गया है। जो बात मूल लेखक से छूट गई थी उसे प्रक्षेप करके पूरा कर लिया गया है। मैं यहाँ सभी रूदियों के सम्बन्ध में चर्चा नहीं करूँगा, करने का समय नहीं है, परन्तु कुछ थोडी सी रूढ़ियो की अोर श्रापका क्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ। भारतीय साहित्य की कथानक- रूढ़ियो के विषय में ब्लूमफील्ड ने अमेरिकन ओरिएण्टल सोसायटी के जर्नल की छत्तीसवी, चालीसवीं, एकतालीसवीं जिल्दों में कई लेख लिखे हैं और पेजर ने कथासरित्सागर के नये संस्करण में अनेक महत्त्वपूर्ण टिप्पणियों दी हैं। इस विषय पर अन्य कई यूरोपियन पडितों ने भी विशेषभाव से परिश्रम किया है, जिनमें डबल्यू० नार्मन ब्राउन का नाम उल्लेखनीय है। यद्यपि वेनिफी नामक जर्मन पडित की कृतियों बहुत पुरानी हो गई हैं तथापि वे इस विषय के जिज्ञासुत्रों के काम की चीज हैं। साधारणत: इन पंडितों ने निन्धरी कहानियों के अभिप्रायों के विषय में ही काम किया है; परन्तु उस अध्ययन का उपयोग परवत्ती ऐतिहासिक कथानों के क्षेत्र में भी उपयोगी है । अस्तु, यहाँ दो-चार रूढ़ियों के बारे मे ही कुछ कहने की इच्छा है।