पृष्ठ:हिंदी साहित्य का आदिकाल.pdf/९४

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चतुर्थ व्याख्यान अवस्था की सूचना देकर राजा को बड़ी रानी (इंछिनी) की ओर उन्मुख करना। दोनो ही स्थानो पर सुग्गे ने महत्त्वपूर्ण कर्म किया है। इनमे पहला तो उस अत्यधिक प्रचलित लोककथानक का स्मारक है जिसका उपयोग जायसी ने भी किया था। इस कथानक मे इतिहास खोजने के लिये मूंड मारना वेकार है। यह अत्यन्त प्रचलित लोककथा थी। इसे श्रमुक पुराण से अमुक ने चुराया है, कहकर पौराणिक कथा मानना भी उचित नही है। यह दीर्घकाल से प्रचलित भारतीय कथानक-रूढ़ि है। दो या तीन स्थानो पर ही इसका उपयोग नहीं हुआ है, कई स्थानों पर हुश्रा है। तीसरा भी चिर-प्रचलित स्थानक-रूढि है और भिन्न-भिन्न प्रदेशो की लोककथाओ मे श्राज भी खोजा जा सकता है। पद्मावतीवाली कहानी पर थोडा और भी विचार करना है। मारतीय साहित्य मे सिंहल देश की राजकन्या से विवाह के अनेक प्रसगों की चर्चा श्राती है। साधारणतः उनमे परिचारिका से प्रेम और बाद मे परिचारिका का रानी की बहन के रूप मे अमिज्ञान-इस कथानक की रूढि का ही श्राश्रय लिया जाता है। श्रीहर्षदेव की रत्नावली मे इसी रूढि का ही श्राश्रय लिया गया है | कौतूहल की लीलावती मे भी नायिका सिंहलदेव की राजकन्या ही है, और जायसी के पद्मावत मे भी वह सिंहलदेश की ही कन्या है। इन सभी स्थानों पर सिंहल को समुद्र-मध्य-स्थित कोई द्वीप माना गया है । अपभ्रश की कथाओं मे भी इस सिंहलदेश का समुद्र-स्थित होना पाया जाता है। ऐसी प्रसिद्धि है कि सिंहलदेश की कन्याएँ पद्मिनी जाति की सुलक्षणा होती हैं। जायसी के पद्मावत तक के काल मे सिंहल के समुद्र-स्थित होने की चर्चा आती है। परन्तु बाद मे सिंहलदेश के सम्बन्ध मे कुछ गोलमाल हुश्रा जान पड़ता है। मत्स्येन्द्रनाथ के सम्बन्ध मे प्रसिद्ध है कि वे किसी स्त्री-देश मे विलासिता मे फंस गये थे, और उनके सुयोग्य शिष्य गोरक्षनाथ ने वहाँ से उनका उद्धार किया था। 'योगिसम्प्रदायाविष्कृति' नामक एक परवर्ती ग्रंथ मे सिंहल को 'त्रिया-देश' अर्थात् 'स्त्री-देश' कहा गया है। भारतवर्ष में 'स्त्री-देश' नामक एक स्त्रीदेश की ख्याति बहुत प्राचीन काल से है। इसी देश को 'कदलीदेश' और बाद की पुस्तकों मे 'कजरीवन' कहा गया है। मैंने अपनी पुस्तक 'नाथ-सम्प्रदाय मे इस स्त्री-देश और कजरीवन के सम्बन्ध में विस्तार से विचार किया है। यहाँ प्रासंगिक सिर्फ इतना ही है, कि परवती काल की नाथ-अनुश्रुतियों में सिंहलदेश, त्रिया-देश और कजरी- चन को एक दूसरे से उलझा दिया गया है। पद्मावत के समय मे भी सिंहलदेश दक्षिण मे समझा जाता था। परन्तु कुछ वाद चलकर 'त्रिया-देश' और 'कजरीवन' के साथ उलझा देने के कारण उसे उत्तर मे समझा जाने लगा। यह विश्वास किया जाता था कि सिंहल में पद्मिनी नारियों हुआ करती थी, जिनके शरीर से पद्म की सुगंधि निकलती रहती है, और जो उत्तम जाति की स्त्री मानी जाती है। रासो में पद्मावती के विवाहवाला अध्याय इसी परवर्ती काल के विचारगत उलझन की सूचना देता है। कहानी उसमें वही है, जो पद्मावत में है। परन्तु वहाँ पद्मावती उत्तरदेश की राजकन्या बताई गई है। पुरानी कहानी की स्मृति इसके कुछ शब्दों में जी रही है। जैसे, यह तो नहीं कहा गया कि पद्मावती सिंहलदेश की राजकन्या थी। परन्तु उसके नगर का नाम 'समुद्रशिखर