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भक्तिकाल की फुटकल रचनाएँ

कवि ने रचना-काल का उल्लेख इस प्रकार किया है––

दिल्लीपति अकबर सुरताना। सप्तदीप में जाकी आना॥
धरमराज सब देस चलावा। हिंदू तुरुक पंथ सब लावा॥

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सन नौ सै इक्कानबे आही। करौं कथा औ बोलौं ताही‍॥

(७) महाराज टोडरमल––ये कुछ दिन शेरशाह के यहाँ ऊँचे पद पर थे, पीछे अकबर के समय में भूमिकर-विभाग के मंत्री हुए। इनका जन्म संवत् १५८० में और मृत्यु संवत् १६४६ में हुई। ये कुछ दिनों तक बंगाल के सूबेदार भी थे। ये जाति के खत्री थे। इन्होंने शाही दफ्तरों में हिंदी के स्थान पर फारसी का प्रचार किया जिससे हिंदुओं का झुकाव फारसी की शिक्षा की ओर हुआ। ये प्रायः नीतिसंबंधी पद्य कहते थे। इनकी कोई पुस्तक तो नहीं मिलती, फुटकल कवित्त इधर-उधर मिलते है। एक कवित्त नीचे दिया जाता है––

जार को विचार कहा, गनिका को लाज कहा,
गदहा को पान कहा, आँधरे को आरसी।
निगुनी को गुन कहा, दान कहा दारिद को,
सेवा कहा सूम की अरंडन की डार सी॥
मदपी को सुचि कहाँ, साँच कहाँ लंपट को,
नीच को बचन कहा स्यार की पुकार सी।
टोडर सुकवि ऐसे हठी तौ न टारे टरै,
भावै कहौ सूधी बात भावै कहौ फारसी॥

(८) महाराज बीरबल––इनकी जन्मभूमि कुछ लोग नारनौल बतलाते हैं और इनका नाम महेशदास। प्रयाग के किले के भीतर जो अशोक-स्तंभ है। उस पर यह खुदा है––"संवत् १६३२ शाके १४९३ मार्ग बदी ५ सोमवार गंगादास-सुत महाराज बीरबल श्रीतीरथराज प्रयाग की यात्रा सुफल लिखितं।" यह लेख महाराज बीरबल के सबंध में ही जान पड़ता है क्योकि गंगादास और महेशदास नाम मिलते जुलते है जैसे, कि पिता पुत्र के हुआ करते है। बीरबल का जो उल्लेख भूषण ने किया है उससे इनके निवासस्थान का पता चलता है––