कुंतल ललित नील, झुकुटी धनुष, नैन
कुमुंद कटाच्छ बान सबल सढाई है।
सुग्रीव सहित तार अंगदादि भूषनन,
मध्यदेश केशरी सु जग गति भाई है॥
विग्रदानुकूल सब लच्छ लच्छ कच्छ बल,
ऋच्छराज-मुखी मुख केसौदास गाई है॥
रामचंद्र जू को चमू, राजश्री विभीषन की,
रावन की मीचु दर कूच चलि आई है॥
पढौं विरचि मोन वेद, जीव सोर छाढि रे। कुबेर बेर कै कही, न जच्छ भीर मढि रे॥
दिनेस जाइ दूर बैठु नारददि संगही। न बोलु चंद मंदबुद्धि, इंद्र की सभा नहीं॥
(१४) होलराय––ये ब्रह्मभट्ट अकबर के समय में हरिवंश राय के आश्रित थे और कभी-कभी शाही दरबार में भी जाया करते थे। इन्होंने अकबर से कुछ जमीन पाई थी जिसमें होलपुर गाँव बसाया था। कहते है कि गोस्वामी तुलसी दासजी ने इन्हें अपना लोटा दिया था पर इन्होने कहा था––
लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल।
गोस्वामीजी ने चट उत्तर दिया––
मोल तोल कछु है नहीं, लेहु राय कवि होल॥
रचना इनकी पुष्ट होती थी, पर जान पड़ता है कि ये केवल राजाओं और रईसो की विरुदावली वर्णन किया करते थे जिसमें जनता के लिये ऐसा कोई विशेष आकर्षक नहीं था कि इनकी रचना सुरक्षित रहती। अकबर बादशाह की प्रशंसा में इन्होंने यह कवित्त लिखा है––
दिल्ली तें न तख्त ह्वै है, बख्त ना मुगन कैसो,
ह्वै है ना नगर बढ़ि आगरा नगर तें।
गंग तें ने गुनी, तानसेन तें न तानबाज,
मान तें न राजा ओ न दाता बीरबर तें॥