पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१२
हिंदी-साहित्य का इतिहास

रहस्यवादियों की सार्वभौम प्रवृत्ति के अनुसार ये सिद्ध लोग अपनी बानियों के सांकेतिक दूसरे अर्थ भी बताया करते थे, जैसे-

काआ तरुअर पंच बिड़ाल

(पंच विड़ाल- बौद्ध शास्त्रों में निरूपित पंच प्रतिबद्ध-आलस्य, हिंसा, काम, चिकित्सा और मोह। ध्यान देने की बात यह है कि विकारों की यही पॉच संख्या निर्गुण धारा के संतो और हिंदी के सूफी कवियो ने ली । हिदू शास्त्रों में विकारों की बंधी संख्या ६ हैं । )

गंगा जउँना माझे बहइ रे नाई ।

( - इला पिंगला के बीच सुषुम्ना नाड़ी के मार्ग से शून्य देश की ओर यात्रा ) इसी से वे अपनी बानियों की भाषा को "संध्याभाषा” कहते थे ।

ऊपर उद्धृत थोड़े से वचनो से ही इसका पता लग सकता है कि इन सिद्धो द्वारा किस प्रकार के संस्कार जनता में इधर उधर बिखेरे गए थे। जनता की श्रद्धा शास्त्रज्ञ विद्वानो पर ले हटाकर अंतर्मुख साधनोवाले योगियो पर जमाने का प्रयत्न ‘सरह' के इस वचन घट में ही बुद्ध है यह नहीं जानता, आवागमन को भी खंडित नहीं किया, तो भी निर्लज कहता है कि "मै पंडित हूँ” में स्पष्ट झलकता है। यहीं पर यह समझ रखना चाहिए कि योगमार्गी बौद्वो ने ईश्वरत्व की भावना कर ली थी-

अत्यात्मवेद्यो भगवान् उपमावर्जितः प्रभुः ।।

सर्वगः सर्वव्यापी च कर्ता हत्त जगत्पतिः ।।

श्रीमान् वजसत्त्वोऽसौ व्यक्तभाव-प्रकाशक ।।

-व्यक्त भावानुगत तत्त्वसिद्धि

( दारिकपा की शिष्या सहजयोगिनी चिता कृत )

इसी प्रकार जहाँ रवि, शशि, पवन आदि की गति नहीं वहाँ चित्त को विश्राम कराने का दावा, ऋजु' ( सीधे, दक्षिण ) मार्ग छोडकर ‘बंक’ (टेढ़ा, वाम ) मार्ग ग्रहण करने का उपदेश भी है । सिद्ध कण्हपा कहते हैं कि जब तक अपनी

1 Buddhist Esoteriom. Dr Benoytosh Bhattacharya