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रीतिकाल के अन्य कवि


दिग्गज दबत दबकत दिगपाल भूरि,
धुरि की धुँधेरी सौं अँधेरी आभा भान की।
धाम और धरा को, माल बाल अबला को अरि,
तजत परान राह चाहत परान की॥
सैयद समर्थ भूप अली अकबर-दल,
चलत बजाय मारू दुंदुभी धुकान की।
फिरि फिरि फननि फनीस उलटतु ऐसे,
चोली खोलि ढोली ज्यों तमोली पाके पान की॥


न्हाती वहाँ सुनयना नित बावली में,
छूटे उरोजतल कुंकुम नीर ही में।
श्रीखंड चित्र दृश-अंजन संग साजै।
मानौ त्रिबेनि नित ही घर ही बिराजै॥


हाटक-हंस चल्यो उडिंकै नभ में, दुगनी तन-ज्योति भई।
लीक सी खैंचि गयो छन में, छहराय रही छवि सोनमई॥
नैनन सों निरख्यो न बनायके, कै उपमा मन माहिं लई।
स्यामल चीर मनौ पसरयो, तेहि पै कल कंचन बेलि नई॥

(२३) सरजूराम पंडित––इन्होंने "जैमिनि पुराण भाषा" नामक एक कथात्मक ग्रंथ संवत् १८०५ में बनाकर तैयार किया। इन्होंने अपना कुछ भी परिचय अपने ग्रंथ में नहीं दिया है। जैमिनी पुराण दोहों चौपाइयों में तथा और कई छंदों में लिखा गया है और ३६ अध्यायों में समाप्त हुआ है। इसमें बहुत सी कथाएँ आई हैं; जैसे युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ, संक्षित रामायण, सीतात्याग, लवकुश-युद्व, मयूरध्वज, चंद्रहास आदि राजाओं की कथाएँ। चौपाइयों का ढंग "रामचरिमानस" का सा हैं। कविता इनकी अच्छी हुई है। उसमें गांभीर्य है। नमूने के लिये कुछ पद्य नीचे दिए जाते हैं––