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सामान्य परिचय

काशीनाथ खत्री––इनका जन्म संवत् १९०६ में अगरे के माईथान मुहल्ले में और परलोकवास सिरसा (जिला इलाहाबाद) में जहाँ ये पहले अध्यापक रह चुके थे और अंतिम दिनों में आकर बस गए थे, सं॰ १९४८ (९ जनवरी १८९१) में हुआ। कुछ दिन गवर्नमेंट वर्नाक्यूलर रिपोर्टर का काम करके पीछे ये लाट साहब के दफ्तर के पुस्तकाध्यक्ष नियुक्त हो गए थे। ये मातृभाषा के सच्चे सेवक थे। नीति, कर्तव्यपालन, स्वदेशहित ऐसे विषयो पर ही लेख और पुस्तकें लिखने की ओर इनकी रुचि थी। शुद्ध-साहित्य कोटि में आनेवाली रचनाएँ इनकी बहुत कम हैं। ये तीन पुस्तकें उल्लेख योग्य हैं––(१) ग्राम-पाठशाला और निकृष्ट नौकरी नाटक, (२) तीन इतिहासिक (?) रूपक और (३) बाल-विधवा संताप नाटक।

तीन ऐतिहासिक रूपकों में पहला तो हैं "सिंधुदेश की राजकुमारियाँ" जो सिंध में अरबों की चढ़ाई वाली घटना लेकर लिखा गया; दूसरा है 'गुन्नौर की रानी' जिसमें भुपाल के मुसलमानी राज्य के संस्थापक द्वारा पराजित गुन्नौर के हिंदू राजा की विधवा रानी का वृत्त है; तीसरा है 'लव जी का स्वप्न' जो रघुवंश की एक कथा के आधार पर है।

काशीनाथ खत्री वास्तव में एक अत्यंत अभ्यस्त अनुवादक थे। इन्होंने कई अँगरेजी पुस्तकों, लेखों और व्याख्यानों के अनुवाद प्रस्तुत किए, जैसे––शेक्सपियर के मनोहर नाटकों के अख्थिानों (लैंब कृत) का अनुवाद; नीत्युपदेश (ब्लैकी के Self Culture का अनुवाद); इंडियन नेशनल-कांग्रेस (ह्यूम के व्याख्यान का अनुवाद); देश की दरिद्रता और अँगरेजी राजनीति (दादाभाई नौरोजी के व्याख्यान का अनुवाद); भारत त्रिकालिक दशा (कर्नल अलकाट के व्याख्यान का अनुवाद) इत्यादि। अनुवादों के अतिरिक्त इन्होंने 'भारतवर्ष की विख्यात स्त्रियों के चरित्र', 'यूरोपियन धर्मशीला स्त्रियों के चरित्र', 'मातृभाषा की उन्नति किस विधि करना, योग्य है' इत्यादि अनेक छोटी छोटी पुस्तकें और लेख लिखे।

राधाकृष्णदास भारतेंदु हरिश्चंद्र के, फुफेरे भाई थे। इनका जन्म सं॰ १९२२ और मृत्यु सं॰ १९६४ में हुई। इन्होंने भारतेंदु को अधूरा छोड़ा हुआ नाटक 'सती प्रताप' पूरा किया था। इन्होंने पहले पहल 'दुःखिनी बाला'