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हिंदी-साहित्य का इतिहास

साथ अधिक व्यापक संबंध की अनुभूति मंद पड़ गई हो। 'युगवाणी' में हम देखते हैं कि हमारे जीवन-पथ के चारों ओर पड़नेवाली प्रकृति की साधारण से साधारण, छोटी से छोटी वस्तुओं को भी कवि ने कुछ अपनेपन से देखा है। 'समस्त पृथ्वी पर निर्भय विचरण करती जीवन की अक्षय चिनगी' चींटी का अत्यंत कल्पनापूर्ण वर्णन हमें मिलता है। कवि के हृदय-प्रसार का सबसे सुंदर प्रमाण हमें 'दो मित्र' में मिलता है जहाँ उसने एक टीले पर पास-पास खड़े चिलबिल के दो पेड़ों को बड़ी मार्मिकता के साथ दो मित्रों के रूप में देखा है––

उस निर्जन टीले पर
दोनों चिलबिल
एक दूसरे से मिल
मित्रों-से हैं खड़े,
मौन मनोहर।
दोनों पादप
सह वर्षातप
हुए साथ ही बड़े
दीर्घ सुदृढ़तर।

शहद चाटनेवालों और गुलाब की रूह सूँघनेवालों को चाहे इसमें कुछ न मिले; पर हमें तो इसके भीतर चराचर के साथ मनुष्य के संबंध की बड़ी प्यारी भावना मिलती है। 'झंझा में नीम' का चित्रण भी बड़ी स्वाभाविक पद्धति पर है। पंतजी को 'छायावाद' और 'रहस्यवाद' से निकलकर स्वाभाविक स्वच्छंदता (True Romanticism) की ओर बढ़ते देख हमें अवश्य संतोष होता है।



श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'––पहले कहा जा चुका है कि 'छायावाद' ने पहले बँगला की देखादेखी अँगरेजी ढंग की प्रगीत पद्धति का अनुसरण किया। प्रगीत पद्धति में नाद-सौंदर्य की ओर अधिक ध्यान रहने से संगीत-तत्व का अधिक समावेश देखा जाता है। परिणाम यह होता है कि