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हिंदी-साहित्य का इतिहास

बहुत अधिक मिलते हैं। बुंदेलखंड मे––विशेषतः महोबे के, आसपास––भी इसका चलन बहुत है।

इन गीतों के समुच्चय को सर्वसाधारण 'आल्हा-खंड' कहते हैं जिससे अनुमान होता हैं कि आल्हा-संबंधी ये वीर-गीत जगनिक के रचे उस बड़े काव्य के एक खंड के अंतर्गत थे जो चंदेलों की वीरता के वर्णन में लिखा गया होगा। आल्हा और ऊदल परमाल के सामंत थे और बनाफर शाखा के क्षत्रिय थे। इन गीतों का एक संग्रह 'आल्ह खंड' के नाम से छुपा है। फर्रुखाबाद के तत्कालीन कलेक्टर मि॰ चार्ल्र्स इलियट ने पहले पहल इन गीतों का संग्रह करके ६०-७० वर्ष पूर्व छपवाया था।


(७) श्रीधर––इन्होंने संवत् १४५४ मे 'रणमल्ल छंद' नामक एक काव्य रचा जिसमें ईडर के राठौर राजा रणमल्ल की उस विजय का वर्णन है जो उसने पाटन के सुबेदार जफर खाँ पर प्राप्त की थी। एक पद्य नीचे दिया जाता है––

ढमढमइ ढमढमकार ढकर ढोल ढोली जंगिया।
सुर करहि रण-सहणाइ समुहरि सरस रसि समरंगिया॥
कलकलहिं काहल कोढि कलरवि कुमल कायर थरहरइ।
संचरइ शक सुरताण साहण साहसी सवि सगरइ॥