पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१००

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बाजों की गद्दी कोटा में और यदुनाथ जी के वंशजों की गद्दी सूरत में चली । विट्ठलनाथ अपने पिता वल्लभाचार्य के ही समान ब्रजभाषा के कवि नहीं थे। इनकी रचनाएँ राग कल्पद्रुम में नहीं हैं । राग कल्पद्रुम में 'विट्ठल गिरिधरन' छापवाले कुछ पद हैं, जिन्हें सरोजकार ने इन विट्ठलनाथ की रचना समझ रखा है। इस छाप से विट्ठलनाथ की शिष्या गंगाबाई लिखा करती थीं। सरोज के "२५ विट्ठल कवि ३" (सर्वेक्षण ५२१) के ग्रियर्सन में इन विट्ठल नाथ से अभिन्न होने की सम्भावना की गई है, यह ठीक नहीं। --सर्वेक्षण ५१९ . विट्ठलनाथ का जन्म सं० १५७२ पौष कृष्ण ९, शुक्रवार को काशी के निकट चरणाट में हुआ एवं मृत्यु फाल्गुन कृष्ण ७, संवत् १६४२ में हुई। . कृष्णदास पय-अहारी, रामानन्द के शिष्य अनन्तानन्द के शिष्य थे और जयपुर के निकट गलता में रहते थे। इन्हीं पय-अहारी जी के शिष्य अग्रदास थे, जिनके शिष्य नाभादास हुए। यह सब रामावत संप्रदाय के हैं। वल्लमा- चार्य के शिष्य का नाम कृष्णदास अधिकारी था । ग्रियर्सन का यह भ्रम बहुत दिनों तक, आजतक, यत्र तत्र चलता भाया है। ____ अष्टछाप निश्चय ही आठ कवियों का समूह था, किसी ग्रंथ का नाम नहीं था। पर ये आठ कवि ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि थे, इसका यह अभिप्राय कभी नहीं । अष्टछाप का अर्थ है उस समय तक के (सं० १६०७), जब कि अष्टछाप की स्थापना विट्ठलनाथ जी ने की, वल्लभ संप्रदाय के आठ सर्वश्रेष्ठ कवियों का समुदाय । ये आठो वल्लभ सप्रदाय के सर्वश्रेष्ठ कवि थे, न कि संपूर्ण ब्रजभाषा काव्य साहित्य के। जिस समय अष्टछाप की स्थापना हुई उस समय तक अष्टछाप में सम्मिलित सूर को छोड़कर अन्य सभी से श्रेष्ठ मीरा, हित हरिवंश, गदाधर भट्ट, श्री भट्ट, स्वामी हरिदास जैसे उत्कृष्ट कवि हो चुके थे या थे। अष्टछापी कवियों में नंददास भी हैं, पर अष्टछाप की स्थापना के समय तक इन्होंने बहुत थोड़ी रचनाएँ प्रस्तुत की थीं। सूरदास के अभीष्ट पद से तात्पर्य 'हठि गोसाईं करी मेरी माठ मध्ये छाप से है। ३६. क्रिशनदास पय अहारी-व्रजांतर्गत गोकुलवासी। १५५० ई० में

- उपस्थित ।

राग कल्पद्रुम । यह वल्लयाचार्य के शिष्य और अष्टछाप के कवि थे। ( देखिए संख्या ३५)। "इनकी कविता अत्यंत ललित और मधुर है।" "इनके बहुत पद राग सागरोद्भव में लिखे हैं ।” एक जनश्रुति है कि कृष्ण के