पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९३

ब्राह्मण द्वारा तुम्हारे शत्रुओं का विनाश होगा। तब उन्होंने मेरा नाम सूरजदास, सूर और सूरश्याम रखा और अन्तर्धान हो गए । तदनंतर मेरे लिए सर्वत्र अन्धकार हो गया। तब मैं ब्रज में रहने के लिए चला गया, जहाँ गोसाई विठ्ठलनाथ ने मेरा नाम अष्टछाप में सम्मिलित कर लिया।

इस प्रकार निम्नांकित वंशावली प्रस्तुत होती है :--

ब्रह्मराव, जगात

चन्द्र (११९० ई० में उपस्थित )

(द्वितीय पुत्र ) गुन चन्द्र

शीलचन्द्र

बीरचन्द्र ( १३०० ई० में उपस्थित )

हरिचंद्र (आगरावासी)

अज्ञात वंशज

रामचन्द्र ( गोपाचल वासी )

सूरजचन्द्र ( १५५० ई० में उपस्थित ) और अन्य छह ।

स्पष्ट है कि यह ब्राह्मण नहीं थे, बल्कि राजवंश के थे । परम्परा के अनुसार यह संवत १५४० (१४८३ ई.) में पैदा हुए थे और इन्होंने आगरा में अपने पिता से संगीत, फारसी और भाषा की शिक्षा पाई थी। अपने पिता की मृत्यु के अनन्तर इन्होंने पद लिखना प्रारम्भ किया और कई शिष्य बनाए । इस समय वे अपने पदों में "सूरस्वामी" छाप रखते थे और इसी नाम से उन्होंने नल दमयंती ५ की कथा लेकर एक कविता लिखी। उस समय वह ______________________________________________ १.'वल्लभाचार्य

२. अपनी तीसरी प्रार्थना के अनुरूप ही वह अक्षरश: अंधे हो गए । 'दूसरो ना रूप देखो, देखि राधा श्याम', इस पंक्ति का यह अनुवाद भी हो सकता है-रात्रि के अंतिम पहर में वह अदृश्य हो गया।

३. व्रज के आठ महान कवियों की सूची।

४. यह चंद्र के ज्येष्ठ पुत्र को 'नरेश' कहते हैं।

५. इसकी एक भी प्रति शत नहीं है। किसी