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आए। इनकी पत्नी भी साथ ही आई। इस साल यह बिहार में स्कूलों के इंस्पेक्टर भी रहे। इस बार सरकार ने इन्हें कैथी के टाइप ढलवाने का कार्य सौंपा। कैथी के अक्षर महाजनी मुड़िया अक्षरों के समन भोड़े थे, आपने उन्हें नागरी के समान सुंदर और सुडौल बना दिया।

तदनंतर यह पटना के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट हए। यहाँ इन्होंने 'पीज़ैंट लाइफ़ इन बिहार' नामक ग्रंथ रचा। यहीं इन्होंने सात भागों में बिहारी की बोलियों का व्याकरण प्रस्तुत किया। इसे बंगाल सरकार ने प्रकाशित किया था और इससे इन्हें अच्छी ख्याति मिली थी।

१८८५ ई० में छुट्टी लेकर यह जर्मनी गए। यहाँ आप कई बड़ी-बड़ी सभाओं में सम्मिलित हुए। आस्ट्रिया के वियना नगर में १८८६ ई० में यूरोपीय प्राच्य विद्या विशारदों की अन्तर्राष्ट्रीय सभा का अधिवेशन हुआ था। ग्रियर्सन इसमें भारत सरकार के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए थे। यहां आपने 'हिन्दुस्तान का मध्यकालीन भाषा साहित्य, विशेषकर तुलसी' शीर्षक निबंध पढ़ा था। इस निबंध की तैयारी में आपने जो टिप्पणियाँ प्रस्तुत की थीं, उन्हीं के आधार पर दो वर्ष बाद इन्होंने हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास लिखा, जिसका नाम 'द माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर आफ़ हिन्दुस्तान' रखा।

१८८७ ई० में ग्रियर्सन छुट्टी से लौटे और गया जिले में कलेक्टर और मैजिस्ट्रेट नियुक्त हुए। यहां भी आपने गया जिले का संक्षिप्त विवरण लिख डाला। इसी समय इन्होंने रुडाल्फ़ हार्नली के साथ बिहारी भाषा का कोष बनाना प्रारम्भ किया, पर यह पूर्ण न हो सका। आपने इसी समय के आस-पास अशोक के शिलालेखों पर एक लेख लिखा था।

१८९२ ई० में इनकी बदली गया से हबड़ा के लिए हुई। यहाँ यह १८९६ ई० तक रहे। यहाँ इन्होंने बिहारी सतसई, पद्मावत, भाषाभूषण और तुलसीकृत रामायण का संपादन किया और पंडित बाल मुकुंद कश्मीरी की सहायता से सरकार के लिए भारत की भाषाओं पर एक निबन्ध लिखा।

१८९६ ई० में यह बिहार में अफ़ीम विभाग में एजेण्ट हुए। १८९८ ई० में भाषा सर्वेक्षण के लिए इनकी नियुक्ति शिमला में हुई। १९०२ ई० में ये विलायत चले गए, सिविल सर्विस से स्तीफा दे दिया और फिर भारत नहीं लौटे तथा वहीं बैठे बैठे भारतीय भाषाओं का सर्वेक्षण करते रहे।

ग्रियर्सन अत्यन्त सज्जन एवं सच्चरित्र थे। इन्हें भारत सरकार ने १८९४ ई० में सी० आई० ई० की उपाधि दी थी। १८९४ ई० में इन्हें हाले (Halle) विश्वविद्यालय से पी-एच० डी० की एवं १९०२ में ट्रिनिटी