पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१६३

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( १५२ ) और रसिक प्रियो पर टीका लिखनेवाले हैं:-( १ ) सूरति मिसर ( संख्या ३२६ ), ( २ ) याकूब खाँ ( संख्या ३९४ ), ( ३ ) ईसुफ़ खाँ ( संख्या ४२१), (४) सरदार (संख्या ५७१), और ( ५ ) हरिजन (संख्या ५७६)। । जब बादशाह अकबर ने प्रवीणराय पातुरी को अपने दरबार में न भेजने की अवज्ञा और विद्रोह के कारण इंद्रजीत पर एक करोड़ का जुरमाना किया, तब. केशवदास छिपकर बादशाह के वजीर बीरबल ( संख्या १०६ ) से मिले, और ‘दियो करतार दुहुँ कर तारी' से समाप्त होने वाली प्रसिद्ध पंक्तियाँ पढ़ी (:. शिवसिंह सरोज में पृष्ठ ३१-३२ पर उद्धृत ) । राजा बीरबल उन पर परम् प्रसन्न हुए और जुरमाना माफ करा दिया, पर प्रवीणराय पातुरी को दरबार में आना ही पड़ा। पुनश्चः-- | विज्ञान गीता सं० १६०० ( १५४३ ई० ) में लिखी गई और मधुकर शाह को समर्पित हुई । रसिकप्रिया की तिथि सं० १६४८ ( १५९१ ई० ) दी. गई है । टि०----देहरी से अभिप्राय देहरी गढ़वाल नहीं है। यह देहरी ओरछा के ही पास एक लघु गाँव है। केशव को ३१ गाँव मिले थे, २१ ही नहीं । कवि प्रिया मैं कवि ने ३१ गाँवों का उल्लेख किया है । विज्ञान, गीता इनको प्रथस महत्वपूर्ण ग्रंथ नहीं है। यह इनके अंतिम ग्रंथों में से है। इसकी रचना सं० १६६७ में, मधुकर शाह की मृत्यु सं० १६४९ के १८ वर्ष बाद, हुई । सं० १६०० में तो केशव उत्पन्न भी नहीं हुए थे । इनका जन्मकाळ सं० १६१२ माना जाता है । मधुकरशाह को शासनकाल भी सं० १६११- से प्रारंभ होता है । कृवि.प्रिया और रामचंद्रिका दोनों की समाप्ति संवत:१६५८. वि० में हुई ।। सर्वेक्षण :६३.

१३५. बलिभद्र सनाढ्य भिसर-उरछा, बुंदेलखंड निवासी; १५८० ई०

. में उपस्थित ।। यह केशवदास के भाई थे। इनको नखशिख सभीः कवियों द्वारा प्रमाण माना जाता है। इन्होंने भागवत पुराण का भी एक तिलक किया था। इनके नखशिख की एक टीका प्रतापसाहि.( सं० १४९ ) ने और दूसरी टीका उनियारा के अज्ञात नाम राजा ( सं० ६६० ) ने की है। १३६. इंदरजीत सिंह---उरछा, बुंदेलखंड के बुंदेला राजा, १५८०ई० में उपस्थित । ।... • .