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थे और न इसके आदि में दिये छन्दों से परिचित थे। ग्रंथारंभ में ही पाँच से लेकर दस संख्यक छह छन्दों में सूदन रचित कवि सूची है। शिव सिंह ने प्रमाद से इसे दस छन्द समझ लिया है। अन्तिम छन्द उनके पास था। इसमें आये कवियों का नाम उन्होंने सरोज में दिया है। इसी का उल्लेख शिव सिंह का निर्देश करते हुये ग्रियर्सन ने भी कर दिया है। अतः स्पष्ट है कि उन्होंने इस ग्रन्थ का भी उपयोग अप्रत्यक्ष रूप से ही किया है। सत्कविगिराविलास में १७ कवियों की रचनायें संकलित हैं। इनकी सूची सरोज में दी गई है। ग्रियर्सन ने यहीं से उक्त सूची अपने ग्रन्थ में उतार ली है। ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता, जिससे सिद्ध हो कि इन्होंने उक्त ग्रन्थ देखा भी था। कविमाला, हजारा, विद्वन्मोद-तरंगिणी, रसचन्द्रोदय, दिग्विजय-भूषण, काव्य संग्रह और कवित्त रत्नाकर को यदि उन्होंने देखा होता तो निश्चय ही इनमें संकलित कवियों की भी सूची उन्होंने दे दी होती। काव्य संग्रह को तो वे कभी भी भूल नहीं सकते थे, क्योंकि इसके अन्त में सरोज के ही समान, इसमें संकलित सभी ५१ कवियों का जीवन चरित्र दे दिया गया है, जिनमें तिथियाँ भी हैं, जो साहित्य शोधी के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं और जिनके सहारे सरोज की तिथियों की जाँच भली-भाँति की जा सकती है कि वे जन्म-काल सूचक हैं। अथवा रचनाकाल सूचक। 'कवि रत्नाकर' यह अशुद्ध नाम सरोज की भूमिका में प्रमाद से छप गया है। ग्रियर्सन ने भी 'कवि रत्नाकर' ही लिखा है। ग्रन्थ का असल नाम ‘कवित्त रत्नाकर' है । सरोकार ने जीवन चरित्र खण्ड में यह नाम दिया भी है। ग्रियर्सन ने मक्षिकास्थाने मक्षिका लिखा है। यह स्पष्ट सिद्ध करता है कि यह ग्रन्थ भी उनकी आँखों के सामने से नहीं गुजरा। यह सम्भव है, कि भक्तमाल और उसका उर्दू अनुवाद तथा एकाध और ग्रन्थ उन्होंने देखे भी रहे हों, पर निश्चय पूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता।

ग्रियर्सन ने कुछ और भी ग्रंथ तथा सूत्रों का उपयोग किया है। इनकी गणना यद्यपि उन्होंने भूमिका की उक्त सूची में नहीं की है, पर उल्लेख कर दिया है तथा मूलग्रंथ में इनका हवाला बार बार दिया है। इनमें प्रथम ग्रंथ है, प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक गार्सो द तासी कृत 'हिस्त्वायर द ला लितरेत्योर हिन्दुई एं हिन्दुस्तानी'। ग्रियर्सन ने इसका उपयोग स्व-संकलित टिप्पणियों की जांच के लिये किया है। इस ग्रन्थ के प्रथम संस्करण का ही उपयोग उन्होंने किया है, क्योंकि उन्होंने जहाँ भी हवाला दिया है प्रथम खण्ड का । पहले संस्करण में प्रथम भाग में जीवन वृत्त था, दूसरे भाग में संकलन था। द्वितीय संस्करण में तीन भाग हैं। तीनों में वृत्त और संकलन साथ साथ हैं। साथ ही तासी में