पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२५६

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...( २३७ ) दो प्रमुख ग्रंथ भोज-भूषण और रस-विलास परम प्रशंसित हुए हैं। शरफो नामक वारांगना के प्रति इनका प्रेम था, जिसपर लिखी हुई इनकी कुछ कविताएँ बहुत प्रसिद्ध हुई थीं। टिक-इन्होंने रसिक-विलास की रचना सं० १८८४ में की थी। रतन सिंह का शासनकाल सं० १८८५-१९१७ है, अत: १८४०ई०(सं० १८९७) इनका उपस्थिति काल ठीक है। .. -सर्वेक्षण ६०० ५२०. अवधेश-बुंदेलखंडी, चरखारी के ब्राह्मण, १८४० ई० में उपस्थित । ___ यह चरखारी के रतन सिंह बुंदेला के पुराने दरबारी कवि थे। इनकी कविताएँ सरस कही गई है, पर शिव सिंह कहते हैं कि उन्हें इनकी कोई पूर्ण पुस्तक नहीं मिली। मिलाइए से० ५४२ । ५२१. रावराना कवि--बुंदेलखंडी । चरखारी के वंदीजन और कवि । १८४० ई० में उपस्थित यह पुगने बुंदेला कवियों के वंश से थे और राजा रतनसिंह के दरवारी कवि थे, जहाँ इनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। ५२२. गोपाल वंदो जन-बुंदेलखंडी, १८४० ई० में उपस्थित । यह चरखारी नरेश रतनसिंह के दरबारी कवि थे। ५२३. बिहारीलाल त्रिपाठी-~टिकमापुर, जिला कान्हपुर के, १८४० ई० । में उपस्थित । मतिराम त्रिपाठी (सं० १४६ ) के वंशजों में यह सर्वाधिक प्रसिद्ध है। यह रामदीन (सं० ५२४) अथवा शीतल (सं० ५२५ ) से बड़े कवि थे । टिo--विहारीकाल त्रिपाठी ने सं० १८७२ में विक्रम सतसई की टीका की थी। --सर्वेक्षण ८०२ ५२४. रामदीन त्रिपाठी-टिकमापुर, जिला कान्हपुर के । १८४० ई० में उपस्थित। . यह मतिराम (सं० १४६ ) के वंशज थे और चरखारी नरेश महाराज रतनसिंह के दरबारी कवि थे। टि०-रामदीन चरखारी नरेश रतनसिंह (शासनकाल सं० १८८६- १९१७ ) के आश्रित थे। --सर्वेक्षण ७२१ ५२५. सीतल त्रिपाठी-टिकमापुर, जिला कान्हपुर. के। १८४० ई० में उपस्थित !