पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/२७९

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संदरी तिलक। यह संस्कृत, भाषा, फारसी और अँगरेजी में प्रवीण थे। १८५० ई० के आसपास इन्होंने शृङ्गार लतिका नाम का एक काव्य ग्रंथ रहा था और उसकी टीका भी की थी। अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में इन्होंने । कविता करना छोड़ दिया था और अँगरेजी कानून का अध्ययन कर रहे थे। यह १८७३ ई० में दिवंगत हुए। अनेक कवियों के अतिरिक्त टाकुर प्रसाद (सं०६००), जगन्नाथ (सं० ६०१), बलदेव सिंह (सं० ६०२) इनके दरबारी कवि थे। इनका कवि-नाम द्विजदेव था। यही सम्भवतः मन्ना लाल (सं० ५८३ ) भी हैं। वह भी अपना उपनाम 'द्विज' रखते हैं । ठाकुर प्रसाद के अनुसार इनके एक पुत्र दरसन सिंह नाम का था। .. टि-सा लाल हिज' बनारसो इनसे भिन्न व्यक्ति हैं। : . ६००. ठाकुर परसाद पयासी मिसर-~-उपनाम पंडित प्रवीन, अवध के। . : : १८५० ई. में उपस्थित । यह पंडित प्रवीन नाम से लिखते थे। यह महाराज मान सिंह (सं० ५९९) के दरबारी कवि थे और पलिया शाहगंज के पास रहते थे। ६५१. जगन्नाथ कवि अवस्थी-सुमेरपुर, जिला उन्नाव के। १८८३ ई० में जीवित यह पहले अवध के महाराज मान सिंह (सं० ५९९ ) के दरबारी कवि थे। तदनन्तर इन्होंने अलवर के महराज शिवदीन सिंह का आश्रय पा. लिया। संस्कृत साहित्य की जानकारी के लिए इनका बड़ा नाम था । इन्होंने भाषा में फुटकर रचनाएँ की है। ६०२. बलदेव सिंजा क्षत्रिय, औध के । १८५० ई० में उपस्थित । - यह महाराज मानसिंह (सं० ५९९) के दरबारी कवि और राजा माधव . सिंह (सं०.६०४) के साहित्य सुरु थे। ६०३. चंडीदत्त कवि-जन्म १८४१ ई० । . यह अवध के महाराज मानसिंह के दरबारी कवि थे। . टि०-१८४१ ई० (सं० १८९८) उपस्थिति काल है । . ६०४. माधव सिंह-गोची अमेठी, जिला सुलतानपुर के राजा माधव सिंह, १८८३ ई० में जीवित । - यह एक ऐसे वंश के थे, जो सदैव विद्या का बड़ा संरक्षक था। यह भी .. वैसे ही हैं। इनके पूर्वजों में हिम्मत सिंह ( देखिए सं० १६० और ३३४.) गुरुदत्त सिंह (सं० ३३२), उमराव सिंह ( देखिए सै० ५८९.) आदि का .