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७५०. दिलाराम कवि

टि०—सरोज में दिलाराम का नाम है (सर्वेक्षण ३५२), पर इनकी कविता के हजारा में होने का कोई उल्लेख नहीं है।
७५१. रामरूप कवि—मैंने इनके कई गीत मिथिला में संकलित किए हैं।

टि०—सरोज सप्तम संस्करण में रामरूप कवि (सर्वेक्षण ७५१) अवश्य हैं, पर तृतीय संस्करण में इनके स्थान पर रसरूप नाम है। न तो रामरूप की और न रसरूप की ही कविता के हजारा में होने का उल्लेख सरोज में है।
७५२. लोघे कवि

टि०—सरोज में इस कवि को 'सं० १७७० में उ०' कहा गया है। हजारा से इनकी कविता होने का भी उल्लेख है।

३. भिखारीदास (सं० ३४४) के काव्य निर्णय में उल्लिखित, अतः १७२३ ई० के पूर्व उपस्थित कवि :—
७५३. लोकनाथ कवि

राग कल्पद्रुम में भी

टि०—सरोज से लोकनाथजी को 'सं० १७८० में उ०' कहा गया है। इसी संवत के आसपास इनकी मृत्यु हुई।

—सर्वेक्षण ८२०


७५४. गुलाम नबी—बिलग्राम जिला हरदोई के सैयद गुलाम नबी, उपनाम रसलीन कवि।

अरबी और फ़ारसी के विद्वान होने के अतिरिक्त, यह भाषा के भी आचार्य थे। इन्होंने 'अंग दर्पण' (१६३७ ई०) नामक नखशिख एवं 'रस प्रबोध' (१७४१ ई०) नाम काव्यशास्त्र के ग्रंथ लिखे। इन तिथियों में कहीं अशुद्धि है। संभवतः बाद वाली तिथि ही शुद्ध है।

टि०—ग्रियर्सन का अनुमान ठीक है। रस प्रबोध का रचनाकार सं० १७९८ (१७४१ ई०) है। अंगदर्पण की रचना सं० १७९४ (१७३७ ई०) में हुई। ग्रियर्सन ने पूरे एक सौ वर्ष की भूल न जाने कहाँ से कर दी है।

—सर्वेक्षण ७५५


७५५. बलि कवि—श्रृंगारी कवि।

टि०—सरोज में इस कवि का उल्लेख दो बार (सर्वेक्षण ५२२, ५६९) हो गया है, पर कहीं भी इनका दास द्वारा उल्लिखित होना नहीं लिखा गया है। हाँ, दूसरी बार इनकी कविता के हजारा में होने का निर्देश अवश्य है।