पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिंदुई साहित्य का इतिहास आघारित हैं, उन्हें अालोचक से कोई नहीं बचा सकता । कभी कभी अत्यन्त साधारण ग्रात्माएँ महानों के प्रति यह व्यवहार न्यायपूर्वक कर सकती हैं । यद्यपि कोई इलियड की रवना न कर सकता हो, तब भी होरेस (Ho race) के अनुसार यह पाया जाता है कि : Quandogue bonus dormitat Homerus. उसी प्रकार राज्य के प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा की गई ग़लतियाँउनका स्थान ग्रहण कर लेने की भावना के बिना, देखी जा सकती हैं । दुर्भाग्यवश आलोचक की ओर प्रवृत्ति प्रायः ट्ष से, ईष्र्या से तथा अन्य कुत्सित माबेगों ‘से उत्पन्न होती है । जो कुछ भी हो, यूरोप की भाँति पूर्व में व्यंग्य प्रचलित है; एशिया का बड़े से बड़ा अत्याचारी इन बाणों से नहीं बचा। जैसा कि शात हैं, दो शताब्दी पूर्व, तु कवि उवैसी ( Gweici ) ने कुस्तुन्तुनिया की जनता के सामने तु शासकों के पतन पर अपनी व्यंग्य वर्षाई की थी, व्यंग्य जिसमें उसने सम्राट् से अपमानजनक विशेष दोषों से सजीव प्रश्न किए थे, जिसमें उसने अन्य बातों के अतिरिक्त बड़े वज़ीर के स्थान पर बहुत दिनों से पशुओं को भरे रखने की शिकायत को है ।' और न केवल प्रशंसनीय व्यक्तियों ने, ख़ास हालतों में, अनिवार्य ‘परिस्थितियों में व्यंग्य लिखे हैं , किन्तु कवियों ने, जैसा कि यूरोप में, इस प्रकार के प्रति अपनी रुचि प्रकट की है, जिसमें उन्होंने अपनी व्यंग्यशकि प्रकट की है ; औरयह नास बात है, कि सामान्यतलेखकों ने व्यंग्य और ध्यशगान एक साथ किया है, क्योंकि वास्तव में यदि किसी को बुरी बातें अरुचिकर प्रतीत होती हैं, तो अच्छी बातों के प्रति उत्साह भी रहता है ; १. यह व्यंग्य डीवल ( Dietz ) द्वारा जर्मन में अनूदित हुआ है, और उसके कुछ अंश कारदोन ( Cardone ) कृत मेलाँछ द लिहरत्यूर ऑरिएँ' (MElanges de littfrature orient, पूर्वी साहित्य का विविधसंग्रह) की जि० २ में फ़ च में अनूदित हुए हैं। श्री द सैसी (de Sacy) का ‘मैगासाँ। ऑसीलोपेदी (Magasin encycl. मैगासाँ विश्वकोष), जि० ६, १८११ में एक लेख सी देखिए।