पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१०९

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कई] हिंदुई साहित्य का इतिहास मुसवी ( Mir Muizzuddin AMucawी ) ने किया है ।' ३. केवल शब्दों का, ब: भो फ़ारसी क्रियाओं का प्रयोग किया जा सकता है. ; किन्तु यह शैली सुरुचिपूर्ण नहीं समझी जाती, तभीरें’। ४. फ़ारसी संयुक्त शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है, किन्तु उनका प्रयोग सोचसमझ कर, छौर केवल उसी समय जघ कि वह हिन्दी भाषा की प्रतिभा के अनुकूल हो, करना चाहिएजैसे उदाहरणार्थ गुप्त व गोई, बातचीत’ : ५. ‘इलूम (it-) नामक शैली में लिखा जा सकता है । यह प्रकार पुराने कवियों द्वारा बहुत पसन्द किया जाता है ; किन्तु वस्तव में उसका प्रयोग केवल कोमलता और संयम के साथ होता है। उसमें ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिसके दो श्र* होते हैं, एक बहुत अधिक प्रयुक्त (करी) और दूसरा कम प्रयुक्त (ई) चौर कम प्रयुक्त चर्थ में उन्हें इस प्रयोग में लाना कि पाठक चक्कर में पड़ जाय ३ ६. एक प्रकार का मध्यम मार्ग ग्रहण किया - एक अरब के मिसरे में और एक हिन्दुस्तानों के मिसरे में रचित पथ भर पाए जाते हैं । उसका एक उदाहरण मैने अपने बंदों के विवरण( 16moire sur e mtrique ) में उद्धृत किया है । ऐसे भिश्रतों के उदाहरण फ्रांसीसी में मिलते हैं : अन्य के प्रतिरिक्त पानार ( Panard ) की रचनाओं में पाए जाते हैं। फ़ारसी में भी ऐसे पशु पाए जाते हैं जिनका एक मिसरा अरबी , और दूसरा फारतों में है । उन्हें मुलम्मा' कहते है । देखएग्लैंडविन, ‘Dissertation on the Rhetorics etc. of the Persians' ( फ़ारस वालों के कायशास्त्र आदि पर दावा )। २ संभवतः लेवक कुछ ऐसे पत्रों का उल्लेख करना चाहता है जो इस समय फ़ारसी और द्विन्दी में है : त्रिय रा (Chiabrera ) के लैटिन-टैलियन दो चरों वाले अंद के लगभग समानजिसे मेरे पुराने साथी श्री यूसेज़ द सल (M. Euskbe de Salles) ने मेरी पहली जिद पर एक विद्वत्तापूर्ण लेख में उद्धृत किया है : In mare irato, in subita procella Invoco temostra benigna stella . 3 इलहामनामक अलंकार पर, देखिए‘Rhétorique des nations