पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१३

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गया है। वास्तव में द्वितीय संस्करण में न केवल कुछ कवियों के संबंध में नवीन सामग्री ही उपलब्ध होती है, वरन् उसमें अनेक नवीन कवियों और लेखकों का भी उल्लेख हुआ है। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम साठ-सत्तर वर्षों के गद्य-लेखकों का उल्लेख द्वितीय संस्करण की विशेषता है। तासी के उल्लेखों से यह प्रमाणित हो जाता है कि गद्य के विकास में नवीन शिक्षा ने भारी योग प्रदान किया। और जैसा कि पहले कहा जा चुका है, प्रथम संस्करण की दूसरी जिल्द की सामग्री का उपयोग द्वितीय संस्करण के मुख्यांश में ही हो गया है। प्रस्तुत अनुवाद के अंत में मूल के परिशिष्टों और 'मधुकर साह' और 'राँका और बाँका' संबंधी परिशिष्टों के अतिरिक्त 'जै देव' और 'संकर आचार्य' को भी परिशिष्टों में रख दिया गया है। मूल परिशिष्टों के अनुवाद में ऐतिहासिक या विषय के महत्त्व की दृष्टि से कुछ अहिन्दी पुस्तकें भी सम्मिलित कर ली गई हैं। तासी द्वारा 'भक्तमाल' से लिए गए अवतरणों का फ़्रेंच से हिन्दी में अनुवाद करते समय मैंने छप्पय सर्वत्र और कुछ अन्य उपयुक्त अंश मूल 'भक्तमाल' से ही ले लिए हैं, जिनकी ओर यथास्थान फ़ुटनोट में संकेत कर दिया गया है। तासी ने सर्वत्र अकारादिक्रम ग्रहण किया है। प्रस्तुत अनुवाद में रोमन के स्थान पर देवनागरी अकारादिक्रम ग्रहण किया गया है जिससे कवियों, लेखकों और ग्रन्थों आदि का वह क्रम नहीं रह गया जो मूल फ़्रेंच में है।

अनुवाद करते समय इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि जहाँ तक हो सके अनुवाद मूल के समीप रहे। मूल लेखक विदेशी था, इसलिए अनेक शब्दों को ठीक-ठीक समझने और लिखने में उसने भूल की है। अनुवाद में उन्हें शुद्ध रूप में लिखने की चेष्टा नहीं की गई; उन्हें उसी रूप में रहने दिया गया है जिस रूप में तासी ने लिखा है। इसीलिए प्रस्तुत पुस्तक में अनेक शब्दों और