पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१३२

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[ १०५ के असली नाम के आधार पर रखा गया है, जिनके संबंध में इस इतिहास में लिखे गए लेख में सूचनाएं मिलें गीं। जिन्हें वास्तव में सूचीपत्र कहा जाता है उनसे मुक्र ग्रंथसूची भग के लिए बहुत बड़ी सहायता प्राप्त हुई है । इस रूप में, लस्ननऊ के आलइ श्रमद नामक सज्जन के फ़ारसी और हिंन्दुस्तानी इस्तलिखित ग्रंथों के बहुमूल्य संग्रह के हस्तलिखित और १२११ ( १७६६७ ) में प्रतिलिपि किए गएसूत्र के एक भाग से विशेषतः सहायता ली है ': बंगाल की एशियाटिक सोसायटी के फ़ारसी अक्षरों वाले सूचीत्र नौर देवनागरी अक्षरों वाले सूचोपत्र से; और संग्रहभाग के लिए मैंने अँगरेज़ी विद्वानों की देनइस दृष्टि से दो महत्वपूर्ण संग्रहों से लाभ उठाया है । पहला है, स्वर्गीय कर्नल ब्राउटन कृत सेलेक्शत फ्रॉम दि पॉप्यूलर पोयट्री श्रॉव दि हिन्दूज़', जिसमें उनसठ लोकप्रिय भारतीय गोतों के उदाहरण हैं, औौर इसलिए हमें अनेक प्राचीन कवियों का परिचय प्राप्त होता है । दूसरा जिसमें कई रचनाएों के रचयिता, हिन्दुस्तानी के प्रसिद्ध लेखकतारिणी चरण मित्रका सहृयोग था, मेरे लिए उपयोगी सिद्ध होने वाले सग्रहों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । उसमेंअन्य बातों के अतिरिक्त , ‘भक्तमाल से वे उद्धरणकभीर कृत रेलूते, तुलसने कृत रामायण’ का एक काण्ड, ‘हितोपदेश' के उर्दू रूपान्तर से उद्धरण, जवाँ कृत ‘मुकुन्तला’ की कथा, अंत में तीन सौ अड़तालीस छोटी-छोटी कविताएँ हैं जिनमें से अनेक लोकप्रिय गान बन गई हैं 1 दुर्भाग्यवश ये तकिरे बहुत कम सन्तोषजनक रूप लिखे गए हैं । उनमें १इस सूचपत्र की एक प्रति, जो उनकी अपनी थीं, प्रोफेसर डी० फोर्स ने कृपापूर्वक मुझे दी थी और जो बाद को रॉयल एशियाटिक सोसायटों को दे दी गई । एक दूसरी प्रति सर गोर आउल्ले की हस्तलिखित पोथियों में थ; जैसा कि मुझे स्वर्गीय नैथे नयल ब्लैंड से शात हुआ है, कि बरहर ( Barhara ) के एक निवास ने १२११ ( १७३६-३७ ) में, एक दूसरी प्रति के स् , उसकी प्रतिलिपि की है।