पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१३५

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१०८ ] । हिंदुई साहित्य का इतिहास बातें लिखी हैं , तत्पश्चात्, बारहवीं शताब्दी में , जो राजपूतों के होमर 'कहे जाते हैं, और पीपा, जिनकी कविताएँ सिक्खों के ‘आादि ग्रन्थ ’ में हैं , तेरहवीं शताब्दी में , सादो, जिन्होंने कुछ कविताएँ उर्दू वोलो में लिखना पसन्द किया ; बैजू बावर ( Ba war ), प्रसिद्ध कवि और गवैया; , चौदहवीं शताब्दी में, दिल्ली के, खुसरोंऔर हैदराबाद के, नूरी । निस्सन्देह, और ऐसे हिन्दुस्तानी लेखक हैं जो इन्हीं शताब्दियों या उनसे पहले रहते थे । मध्य भारत के पुस्तकालयों में निश्चित रूप से ऐसे प्राचीन हिन्दी ग्रन्थ हैं जो अज्ञात हैं; औरहर हालत में, ऐसे बहुतसे लोकप्रिय गीत हैं जो हिन्दी भाषा के विकास के प्रारंभिक यग -तक जाते हैं । पन्द्रहवीं शताब्दी में आधुनिक संप्रदायों के प्राचीनतम संस्थापक दिखाई पड़ते हैं जिन्होंने भक्तिपद्धति सम्बन्धी भाषा के रूप में हिन्दी का प्रयोग किया है, और जिन्होंने इस बोली में धार्मिक भजनों और नैतिक कविताओं का सु.किया है। उनमें विशेष हैं कबीर, जिन्होंने साइस 'पूर्वक संस्कृत के प्रयोग का विरोध किया ; उन के शिछप तगोपाल दास, सुख निधान५३ के संकलनकर्ता और धरम-दास, ‘अमर माल 3 के रच यिता : ननक औौर भागते-, जो श्रत्यधिक प्रसिद्ध हैं और जिनके बारे में अन्यत्र मैंने जो कुछ कहा है उसकी पुनरावृत्ति करना नहीं चाहता * ; पश्चिमी हिन्दुस्तानी में लिखित एक भगवत’ (Bhags vat) के संकलन कर्ता, बाल च, आदि में

  • १२५० के लगभग

२ इस रचना के संबंध में, इस इतिहास के जोवन और प्रन्थसूची भाग में, कबीर पर लेख देखिए । मेरो ‘रूदीम द ल लाँग ऐंड' ( हिन्दुई भाषा के प्राथमिक सिद्धांत ) की भूमिका देखिए०५ । ‘दीम द लाँग फंदुई' की भूमिका तथा इस रचना मैं । से