पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१४९

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१२२] हिंदुई साहित्य का इतिहास द्वारा अपने लिते यूर दे नैन' ( हबशियों का साहित्य ) में दी गई प्रसिद्ध हशियों की सूची में यह नाम जोड़ देना चाहिए ' प्रस्तुत हशी कवि पटना का निवासीऔर प्रतीत होता है, दात, था । वह इस शताब्दी के प्रारंभ में जीवित था ।' हिन्दी के लगभग सत्र लेखक हिन्दुओं के नवीन संप्रदाों से संबंध रखते हैं , अर्थात् जैनों, कबीर-पंथियोंसिक्खों और सब प्रकार के वैष्णवों से इन संप्रदाों के, जैसे अत्यधिक प्रसिद्ध वैसे ही कम-सेकम शात, गुरु भी हिन्दी कवि हैं , वे हैं : रामानन्द, वल्लभ, दयदासगीत गोविंद ' शीर्षक प्रसिद्ध संस्कृत कविता के रचयिता जयदेव, दा, बीरभानबावा लाल, रामवरणशिवनारायण श्रादि । केवल बहुत थोड़े शैव हैं जिन्होंने हिन्दी में लिखा हो । अधिकतर वे पुरानी पद्धति के साथसाथ पुरानी भाषा के प्रति आसक्ति रखते हैं । जहाँ तक मुसलमानों से संबंध है वे, भारत में, कर्म की दृष्टि से सुन्नियों अर्थात् ‘परंपरावादी’ और शियों अर्थात् पृथक् होने वालों, में विभक्त हैं। प्रायः सुन्नियों की कैथोलिकों और शियों की प्रोटेस्टेंटों से तुलना की जाती है, क्योंकि इन बाद वालों ने ‘सुन्न’ या ‘मुहम्मद के कार्यों से संधित परंपग' को भरवीकार कर दिया था, और उन सब ने हदीस, अर्थात् परंपरानुसार मुहम्मट द्वारा कहे बताए गए शब्दोंको स्वीकार कर लिया था ! किन्तु, शार्टी (Chardin) ने, जो वास्तव में, प्रोटेस्टेंट थे, उसे उल्टा कर दिया है, संभवत: शिया संप्रदाय के वाह्यार्डीचरों के कारण । संस्थापक के नाम के आधार पर, सैयदअहमदी नामक, मतभेद वाले भी हैं । वे भारत के बाहबी हैं और कभीकभी इसी प्रकार पुकारे १ इश्नों के आधार पर रखे सेंगर ( कैथूलौग’ जि० पहली, ge २१५ )। २ मैं उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने मेरे ‘मेम्वार पर औ शाषित्र अंको कुरन( कुरान के एक अज्ञात परिच्छेद का विवरण ) में यह तुलना की है। जून .सयातक', १८४२ ।