पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१७६

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कबीर F २१ उठाया, किन्तु उन्होंने वहाँ शव के स्थान पर केवल फूल पाए । हिन्दुओं ने आाधे फूल लेकर उन्हें जला दिया, और उस पर एक समधि बनवा दी। मुसलमानों ने दूसरा आधा भाग लिया और उस पर कब्र बनवा दी । वे एक साधारण जुलाहे और रामानंद के बारह प्रधान शिष्यों में से थे और जिन्होंने स्वतंत्र रूप से एक अत्यंत गम्भीर और अत्यंत बड़े सुधार का प्रचार किया । उनका नाम 'कबीर' केवल एक उपाधि है जिसका अर्थ सबसे बड़ा है । लोग उन्हें 'शानी' नाम से भी पुकारते हैं। व्यक्तिवाचक नामों की अपेक्षा ये दो विभिन्न तखल्लुस हैं । कहने वाले के हिन्दू या मुसलमान होने के अनुसार यह व्यक्ति गुरु कबीर’ या कबीर साहब’ के नाम से पुक़रा आता था । यह ज्ञात है कि कबीर दोनों के द्वारा समाहत थे और दोनों उन्हें अपनेअपने मत का बताते थे । कहा जाता है उनकी मृत्यु के समय भी इन मत वालों में बड़ा झगड़ा हुआ, उनमें से एक ( मत वाले ) उनका शव दफ़नाना चाहते थे, और दूसरे जलाना । उस समय कबीर उनके बीच के प्रतीत होते थे, और उन्होंने उनसे अपने नश्वर शरीर को ढकने वाले कमल को हटा कर देखने के लिए कहा । उन्होंने वैसा ही कियाऔर केबल फूलों का एक और पाया । बनारस की तत्कालीन शासक बनार ( Banar ) राजा, या बीरसिंह राजा, आधे फूल इस शहर में ले गया, जहाँ उन्हें जलाया गया. और कबीर चौरा नामक समाधि में उनकी राख जमा कर दी गई । दूसरी ओर मुसलमान दल के नेता, बिजली रखाँ पठानते गोरखपुर के समीप संगहर में, जह वास्तव में कबीर मृत्यु को प्राप्त हुए, दूसरे आधे भाग पर कन ' मेरे पास एक मूल चित्र है जिसमें कबाहर अपने जुलाहागोरी के कारखाने के सामने बैठे हुए चित्रित किए गए हैं उनकी बाई ओर उनका पुत्र कमालऔर दाईं ओर एक दूसरा काम करने वाला और शिष्य है जिसकी उपाधि ‘हकीम' है।