पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१७९

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२४ ? हिंई साहित्य का इतिहास कबीरत कही जानेवाली रचनाएँ इतनी अधिक विविध प्रकार की और इतनी अधिक बड़ीबड़ी हैं कि ( वे ) बिलकुल उन्हीं की नहीं कही जा सकतींऔर कुछ तो प्रत्यक्षतआधुनिक हैं, किन्तु जो रसैनी’ और शब्द' नाम से प्रचलित हैं उनमें से कई ऐसी हैं। जिनकी प्राचीनता स्पष्ट है,” और जो पहली हैं ( वे ) सामान्यत: उर्दू रचनाएँ हैं । इतने पर भी उनकी प्रधान रचनाशैली समान हैं, किन्तु उनमें मुख्य भेद शब्दों के चयन की दृष्टि से है। जिनमें से लगभग एक का भी फ़ारसी से संबंध नहीं है । श्री डब्ल्यूए प्राइस ने, जिनकी रचना से मैंने इससे पहले का कुछ भाग लिया है, कबीर कृत रेखत' के ४३ पृष्टों का केवल मूल भाषा में संक लन किया है, और जनरल हैरियट (Harnict) ने उनके विजक' के अवतरणों का । चुनार के सूबेदार रामसिंह की मित्रता के कारण मिली विजकरने की जो प्रति उनके पास थी वह उन्होंने अत्यन्त छापूर्वक मुझे दे दी है, और जो कैथी नागरीनामक अक्षरों में बहुत अच्छी लिखी हुई हैं । श्री विल्सन के पास इसी रचना की स्क और प्रति है, और नामरी अक्षरों में ( लिखित ) कबीर की कविताओंजैसे 'रमैनी, ‘रेखतः' आदि का एक संग्रह है। विजक' में तीन सौ पैंसठ ‘साषी’ या दोहा, एक सौ बारह शब्द' नामक प, चौरासी ‘रमैनी’ नामक तथा अन्य अनेक कविताएँ हैं, (औौर) उसमें कुल १४७ चौपेजी पृष्ठ हैं। । १ श्री विल्सन का कहना है ( ‘एशियाटिक रिसर्च', जि० १६, ४० ५८) कि इन संग्रहों में कहि कबीर' शब्दों से, जो कुछ वास्तव में उनका है; 'ककबीर’ शब्दों से जो कुछ उनको वारियों का सार है; और कहिए दास करशब्दों सेजो कुछ उनके शिष्यों दायों ) में से किसी एक का है, भेद किया जाता है। २ हिन्दी ऐंड हिन्दुस्तानी सेलेक्शन्स, भूमिका, ४० है ३ क्विक, यह बड़े विजक है। छोटे विजक के लिए भागूदास पर लिखित छोटासा लेख देखिए, पहली विल्द ( मूल ), ३२५ ( द्वितीय संस्करण आनुवादक )